SME कंपनियों के मेनबोर्ड में शिफ्टिंग के नियम सख्त हुए:अब वित्त वर्ष में ऑपरेशनल रेवेन्यू ₹100 करोड़ होना जरूरी; मिनिमम नेटवर्थ ₹75 करोड़ हो
स्मॉल मीडियम साइज एंटरप्राइज (SME) कंपनियों के मेनबोर्ड में शिफ्ट होने के लिए जरूरी नियमों में बदलाव किया है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने आज, 24 अप्रैल को नए संशोधित नियमों के लिए सर्कुलर जारी किया है। नए नियमों में SME कंपनियों को मेनबोर्ड में आने के लिए कड़े एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया पूरे करने होंगे। नए नियमों के अनुसार SME कंपनी को कम से कम 3 साल तक एनएसई के SME प्लेटफॉर्म पर लिस्टेड रहना होगा। इसके साथ ही पिछले 3 वर्षों में से कम से कम 2 साल ऑपरेटिंग प्रॉफिट पॉजिटिव होना जरूरी क्राइटेरिया होगा। मेनबोर्ड में बदलने के लिए SME को ये शर्ते पूरी करनी होंगी SME कंपनी क्या है? SME का मतलब है स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइज, यानी ऐसे छोटे-मझोले व्यवसाय व्यवसाय जिनका सालाना टर्नओवर और संपत्ति बड़ी कंपनियों की तुलना में कम होती है। ये कंपनियां आमतौर पर स्थानीय स्तर पर काम करती हैं, जैसे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, टेक्नोलॉजी स्टार्टअप, या पारिवारिक व्यवसाय। अलग प्लेटफॉर्म पर लिस्ट होती हैं SME भारत में SME कंपनियों को शेयर बाजार में लिस्ट करने के लिए BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) और NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) के विशेष प्लेटफॉर्म हैं, जैसे BSE SME और NSE इमर्ज । इन प्लेटफॉर्म्स पर लिस्टिंग की प्रक्रिया मुख्य बोर्ड की तुलना में सरल है। SME कंपनियों को कम पूंजी (जैसे ₹1-25 करोड़ टर्नओवर) और आसान कंप्लायंस नियमों का पालन करना होता है। SME को मेन मार्केट से अलग क्यों रखा जाता है? इसके पीछे तीन वजह हैं: नए नियमों के बाद स्टेबल कंपनियां ही मुख्य बाजार में पहुंचेंगी NSE के नए नियम मुख्य बोर्ड तक आने वाली कंपनियों की वित्तीय स्थिरता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए है। नए नियमों से केवल मजबूत और टिकाऊ प्रदर्शन वाली SME कंपनियां ही मुख्य बाजार तक पहुंच पाएंगी।