Tuesday, December 24, 2024
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स्मृति शेष- पैरेलल सिनेमा के जनक श्याम बेनेगल:खाली वक्त में जादुई संसार में टहलते; कहते थे- हर कथा-कविता से फिल्म बन सकती है

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पैरेलल सिनेमा के जनक श्याम बेनेगल पर फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे ने 3 साल पहले लेख लिखा था। जयप्रकाश चौकसे दैनिक भास्कर के लिए ‘परदे के पीछे’ नाम से कॉलम लिखते थे। उनका यह कॉलम लगातार दो दशक तक दैनिक भास्कर में पब्लिश हुआ। बेनेगल के निधन पर चौकसेजी का यह लेख फिर प्रासंगिक है। इसलिए इसे आज दोबारा पब्लिश कर रहे हैं। ‘भटकोगे बेबात कहीं, लौटोगे अपनी यात्रा के बाद यहीं” फिल्मकार श्याम बेनेगल वृत्त चित्र फिल्म निर्माण की दुनिया में एक चिरपरिचित नाम है। गौरतलब है कि महान फिल्मकार गुरुदत्त, श्याम बेनेगल के चाचा के बेटे थे। श्याम का जन्म एक मध्यम आय वर्ग के परिवार में हुआ था। उनके पिता को स्थिर छायांकन करने का शौक था और प्राय: वे घर पर बच्चों के चित्र लेते रहते थे। ज्ञातव्य है कि हिंदुस्तान में कथा फिल्मों के जनक दादा साहब फाल्के ने भी गमले में अंकुरित पौधे के बढ़ने के कई चित्र लिए थे। गुरुदत्त ने अपनी ‘कशमकश’ नामक कथा श्याम बेनेगल की मां को पढ़ने के लिए दी थी। उन्हें लगा कि कथा अच्छी है परंतु इससे प्रेरित फिल्म बनाना कठिन होगा। कुछ वर्ष बाद ‘कश्मकश’ ही ‘प्यासा’ के नाम से बनाई गई और उसने इतिहास रच दिया। बहरहाल, श्याम बेनेगल ने विज्ञापन फिल्में बनाने वाली ब्लेज नामक कंपनी में नौकरी की। इसी कंपनी ने उनके लिए पहली कथा फिल्म ‘अंकुर’ बनाने के लिए साधन जुटाए। ‘अंकुर’ के अंतिम दृश्य में शबाना का नन्हा पुत्र जमींदार की हवेली पर पत्थर मारता है। गोया की श्याम बेनेगल की फिल्में भी कुरीतियों के शीश महल पर पत्थर की तरह जाकर पड़ती हैं। श्याम ने एक दर्जन से अधिक कथा फिल्में बनाईं। पंडित नेहरू और सत्यजीत राय पर वृत्त चित्र बनाए। श्याम, सत्यजीत राय की फिल्मों से बहुत ज्यादा प्रभावित रहे। श्याम ने नेहरू की किताब पर ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ नामक शो बनाने के लिए दो वर्ष तक शोध किया। नेहरू की किताब में रामायण व महाभारत का विवरण भी था, जिसे सादगी से सीरियल में दिखाया गया है। श्याम बेनेगल ने शशि कपूर के लिए रस्किन बांड के उपन्यास ‘पिजन्स आर फ्लाइंग’ से प्रेरणा लेकर बहु सितारा फिल्म ‘जुनून’ का निर्देशन किया। शशि कपूर अपनी फिल्म यूनिट को पांच सितारा होटल की सुविधाएं देते थे। श्याम बेनेगल ने शशि कपूर को बार-बार समझाया कि उनकी फिल्मों की दर्शक संख्या सीमित है और इतना खर्च करने से घाटा हो सकता है। लेकिन शशि कपूर पर तो सार्थक सिनेमा को भव्य पैमाने पर बनाने का जुनून सवार था। फिल्म में भव्यता लाना उन्होंने अपने भाई से सीखा था परंतु वे यह भूल गए कि बड़े भाई ने बॉक्स ऑफिस की सफलता को कभी नजरअंदाज नहीं किया था। श्याम बेनेगल ने ‘अंकुर’ में शबाना के व्यक्तित्व के जादुई आकर्षण को साधारण पोशाक में भी अक्षुण्ण रखा। श्याम ने सहकारी संस्था के लिए स्मिता पाटिल को लेकर ‘मंथन’ फिल्म बनाई थी। आज हम सहकारिता के आदर्श से प्रेरित कोई काम नहीं कर सकते क्योंकि हम बंटकर शासित होने के अभ्यस्त हो चुके हैं। ज्ञातव्य है कि फिल्मों में सफलता पाने के बाद भी वे अपने दफ्तर में सादगी से काम करते रहे। यह बात उनकी विचार शैली को अभिव्यक्त करती है। श्याम अपने पिता के स्थिर चित्रों को देखकर विगत की यादों में खो जाते थे। उनके पिता ने घर में ही एक 16एम.एम का प्रोजेक्टर रखा था। पूरा परिवार रविवार को फिल्में देखता था। स्पष्ट है कि श्याम बेनेगल खाली वक्त में भी जादुई संसार में विचरण करते थे। उन्हें अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया, लेकिन उन्होंने अपनी विनम्रता को अटल रखा। उन्होंने धर्म वीर भारती के लघु उपन्यास ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ पर कथा फिल्म बनाई। उनका विश्वास है कि हर कथा और कविता से प्रेरित फिल्म बनाई जा सकती है। धर्मवीर भारती की कविता की तरह ही श्याम जानते थे कि ‘भटकोगे बेबात कहीं, लौटोगे अपनी यात्रा के बाद यहीं।’ यह अलकेमिस्ट उपन्यास के नायक के अनुभव की तरह की बात है।

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