नसरल्लाह को सद्दाम ने इराक से भगाया था:सब्जी वाले के घर जन्मा, 22 की उम्र में बनाया हिजबुल्लाह; 50 साल कैसे निभाई इजराइल से दुश्मनी
तारीख- 25 मई, साल- 2000। इजराइली सेना दक्षिणी लेबनान से अपना कब्जा छोड़ देती है। ये लेबनान में हिजबुल्लाह की अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। अगले दिन हिजबुल्लाह का चीफ हसन नसरल्लाह लेबनान के एक छोटे शहर बिंत जबेल पहुंचा। भूरे रंग के कपड़े और काला साफा बांधे 39 साल के नसरल्लाह ने कहा, “इजराइल के पास भले ही परमाणु हथियार हों, लेकिन फिर भी वह मकड़े के जाल की तरह कमजोर है।” करीब 24 साल बाद, 27 सितंबर 2024 को इजराइल ने बेरूत में हिजबुल्लाह के हेडक्वार्टर पर कई टन बारूद गिराए। इजराइली PM ने जनता को भाषण दिया और नसरल्लाह का 24 साल पुराना बयान याद दिलाया। नेतन्याहू ने कहा, “हमारे दुश्मन सोचते थे कि हम मकड़ी के जाल की तरह कमजोर हैं, लेकिन हमारे पास स्टील की नसें हैं।” नेतन्याहू के बयान के कुछ घंटे बाद इजराइली सेना ने पुष्टि कर दी की नसरल्लाह की मौत हो गई है। इजराइली सेना ने कहा, “अब नसरल्लाह दुनिया को आतंकित नहीं कर पाएगा।” आखिर क्यों नसरल्लाह को इजराइल का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता था। बीते कुछ सालों में वह इजराइल के विरोध का सबसे बड़ा चेहरा कैसे बना गया? सब्जी बेचने वाले के घर में जन्म हुआ, बचपन से धर्म से रहा लगाव
हसन नसरल्लाह का जन्म 31 अगस्त 1960 को एक गरीब शिया परिवार में हुआ था। वह 9 भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। उसके पिता लेबनान की राजधानी बेरूत के शारशाबुक इलाके में रहते थे। वे फल-सब्जी बेचकर परिवार का गुजर-बसर करते थे। नसरल्लाह की शुरुआती पढ़ाई बेरूत में एक ईसाई इलाके में हुई। वह बचपन से ही धार्मिक चीजों में दिलचस्पी लेता था। वह ईरान के इमाम सैयद मूसा सद्र से बेहद प्रभावित था। सद्र ने 1974 में लेबनान के शिया समुदाय को ताकतवर बनाने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की। लेबनान में इसे ‘अमल’ नाम से जाना गया। दरअसल, 1974 आते-आते लेबनान में गृह युद्ध छिड़ गया था। शिया, सुन्नी और ईसाई सत्ता में हिस्सेदारी के लिए आपस में झगड़ने लगे थे। ऐसे में अमल को शियाओं के अधिकार रखने के लिए जाना गया। 15 साल की उम्र से ही इजराइल से लड़ना शुरू किया
लेबनान में गृहयुद्ध छिड़ने के बाद सद्र ने दक्षिणी लेबनान को इजराइल की घुसपैठ से बचाने के लिए अमल के आर्म्ड विंग की शुरुआत की। तब 15 साल के नसरल्लाह ने भी अमल जॉइन कर लिया। जब गृहयुद्ध उग्र हुआ तो नसरल्लाह का परिवार अपने पैतृक गांव बजौरीह चला गया। यहां पर नसरल्लाह को कुछ लोगों ने आगे पढ़ने की सलाह दी। इसके बाद दिसंबर 1976 में वह इस्लाम की पढ़ाई के लिए इराक के नजफ शहर चला गया। वहां उसकी मुलाकात लेबनानी स्कॉलर सैयद अब्बास मुसावी से हुई। मूसवी की गिनती कभी लेबनान में मूसा सदर के शागिर्दों में होती थी। वह ईरान के क्रांतिकारी नेता आयातुल्लाह खुमैनी से काफी प्रभावित थे। नसरल्लाह को नजफ में रहते हुए 2 साल ही हुए थे कि सद्दाम हुसैन ने लेबनानी शिया छात्रों को इराकी मदरसों से निकालने का आदेश दे दिया। 1978 में ईराक में शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष बढ़ गया था, इसके बाद नसरल्लाह और अब्बास मुसावी वापस लेबनान आ गया। 22 साल की उम्र में हिजबुल्लाह बनाया, इजराइल के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया
लेबनान लौटने के बाद नसरल्लाह और मुसावी लेबनान के गृह युद्ध में हिस्सा लिया। नसरल्लाह अब्बास मूसवी के पैतृक शहर गए जहां की अधिकतर आबादी शिया थी। इस वक्त तक नसरल्लाह और लेबनान के शिया संगठन ‘अमल’ के बीच मतभेद बढ़ने लगे थे। नसरल्लाह का मानना था कि अमल को इजराइल के खिलाफ काम करने तक सीमित रहना चाहिए। जबकि उस वक्त अमल का नेतृत्व कर रहे नबीह बेरी का मानना था कि उन्हें लेबनान की राजनीति में शामिल होना चाहिए। हसन नसरल्लाह की लेबनान वापसी के एक साल बाद 1979 में ईरान में क्रांति आई और रूहुल्लाह खुमैनी को सत्ता मिली। इससे लेबनान के शिया समुदाय को ईरान का समर्थन मिला। हसन नसरल्लाह ने बाद में तेहरान में ईरान के उस समय के नेताओं से मुलाकात की और खुमैनी ने उन्हें लेबनान में अपना प्रतिनिधि बना दिया। इसके बाद मुसावी और नसरल्लाह ने 1982 में हिजबुल्लाह का गठन किया। तब नसरल्लाह की उम्र सिर्फ 22 साल थी। इस संगठन को ईरान का समर्थन मिला। ईरान ने अपने 1500 इस्लामिक रवोल्यूशनरी गार्ड लेबनान भेजे। इसके बाद हिजबुल्लाह ने लेबनान के दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर रखे इजराइल के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। हिजबुल्लाह के पास अपनी कोई सेना नहीं थी। उसके लड़ाके इजराइली सैनिकों पर छुपकर हमले करते थे। सैन्य अड्डों पर हमला करने के अलावा हिजबुल्लाह ने फिदायीन हमले भी शुरू किए। हिजबुल्लाह ने इजराइल को लेबनान से खदेड़ा
नवंबर 1982 में लेबनान के टायर शहर में इजराइल के मिलिट्री हेडक्वार्टर पर आत्मघाती हमला हुआ। इसमें 75 इजराइली और 20 अन्य की मौत हुई, जिनमें से ज्यादातर कैदी थे। हिजबुल्लाह यहीं नहीं रुका। अप्रैल 1983 में लेबनान में अमेरिकी दूतावास पर बम धमाका हुआ। इसमें 17 अमेरिकियों और 30 लेबनानियों की मौत हो गई। अमेरिकी दूतावास को शिफ्ट किया गया और करीब 1 साल बाद इसकी नई लोकेशन पर भी हमला हुआ। इस बीच बेरूत में अमेरिका के मरीन बैरक और फ्रांसीसी सैन्य अड्डों पर भी हमले हुए, जिनमें 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए। हिजबुल्लाह ने हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली लेकिन उसने इनका समर्थन किया। लगातार हमलों से की वजह से इजराइली सेना 1985 तक साउथ लेबनान के ज्यादातर हिस्से से पीछे हट गई। हालांकि, उसने सीमा के पास कई इलाकों पर कब्जा बनाए रखा। हिजबुल्लाह ने लेबनान में सिक्योरिटी जोन बनाने के नाम पर इजराइली ठिकानों पर हमला जारी रखा। उसी साल लेबनान में शिया ग्रुप के लड़ाके सैन डियागो जा रही TWA फ्लाइट 847 को हाईजैक कर बेरूत ले आए। इस दौरान एक यात्री को मार दिया गया, जबकि बाकी 152 लोगों की रिहाई के बदले इजराइल को 700 लेबनानी-फिलिस्तीनी कैदियों को आजाद करना पड़ा। हिजबुल्लाह ने एक बार फिर प्लेन हाईजैक की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन उसने इसका समर्थन किया। लगातार हमलों की वजह से इजराइली सेना को 1985 तक साउथ लेबनान के ज्यादातर हिस्से से पीछे हटना पड़ा। नसरल्लाह इस वक्त हिजबुल्लाह में नंबर 2 की पॉजिशन पर था। 1992 में हिजबुल्लाह की कमान संभाली, राजनीति से भी जुड़ा
फरवरी 1992 में इजराइल के हवाई हमले में हिजबुल्लाह के चीफ मुसावी की मौत हो गई। इसके बाद नसरल्लाह ने हिजबुल्लाह की कमान संभाली। नसरल्लाह की लीडरशिप में हिजबुल्लाह ने लंबी दूरी तक हमले करने में माहिर रॉकेट हासिल किए, जिससे इजराइल पर हमला करना आसान हो गया। नसरल्लाह के हिजबुल्लाह की कमान संभलाने तक लेबनान में गृहयुद्ध खत्म हो चुका था। इसी साल नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने पहली बार संसदीय चुनाव लड़ा और 12 सीटें जीतीं। इसी के साथ संगठन लेबनान में राजनीतिक रूप से भी एक्टिव हो गया। नसरल्लाह ने लेबनान की राजनीति में अपने पैर जमाने के लिए देश में हिजबुल्लाह की छवि बनाने का काम शुरू किया। उसे देश के सबसे बड़े शिया समुदाय का साथ मिला। नसरल्लाह ने हिजबुल्लाह के नाम पर कई ऐसे सामाजिक कल्याण से जु़ड़े काम किए, जिसे लेबनान की सरकार नहीं कर पाई थी। नसरल्लाह ने इजराइली कैद से छु़ड़ाए फिलिस्तीनी, लेबनानी और अरब
नसरल्लाह की लीडरशिप में हिजबुल्लाह ने इजराइल को कड़ी टक्कर दी। मई 2000 में इजराइल को दक्षिणी लेबनान से हटने पर मजबूर होना पड़ा। 2002 में हसन नसरल्लाह ने इसराइल के साथ वार्ता के दौरान कैदियों की अदला-बदली का समझौता किया। इस दौरान 400 से ज्यादा फिलस्तीनी, लेबनानी कैदियों और दूसरे अरब देशों के नागरिकों को रिहाई मिली। नसरल्लाह ने इससे अपनी छवि को और मजबूत कर लिया। लेबनानी राजनीति में उनके प्रतिद्वंद्वियों के लिए उनका मुकाबला करना और बड़ी चुनौती बन चुका था। जुलाई 2006 में हिजबुल्लाह ने मुठभेड़ के दौरान इजराइल के 2 सैनिकों को बंधक बना लिया। तब एक बार फिर इजराइल ने लेबनान पर हमला कर दिया। 33 दिन तक चली इस जंग में हिजबुल्लाह लेबनान की सबसे मजबूत मिलिट्री फोर्स बनकर उभरा, जो देश के नागरिकों की रक्षा कर सकता था। इजराइल को कड़ी चुनौती देने से लेबनान में हिजबुल्लाह और नसरल्लाह की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ। हालांकि, वे इजराइल की रडार पर आ गया। इसके चलते उसने सार्वजनिक जगहों पर भाषण देना बेहद कम कर दिया। नसरल्लाह के ज्यादातर संबोधन पहले से रिकॉर्ड होते थे। कौन है नसरल्लाह की तरह काली पगड़ी बांधने वाला हाशेम सफीद्दीन हो सकता है उत्तराधिकारी
टाइम्स ऑफ इजराइल के मुताबिक अब हिजबुल्लाह में नसरल्लाह का उत्तराधिकारी माना जाने वाला हाशेम सफीद्दीन बच गया है। सफीउद्दीन नसरल्लाह का चचेरा भाई है और उसी की तरफ काली पगड़ी बांधता है। अमेरिका ने उसे 2017 में आतंकवादी घोषित किया था।