पुष्पा 2 से पहले इस फिल्म में दिखता अर्धनारीश्वर सीन:डायरेक्टर का दावा, बॉलीवुड vs साउथ पर बोले संजय मिश्रा- सिनेमा को बांटना गलत बात
अध्यात्म,अंधविश्वास, खौफ या कुछ और? क्या है ‘द सीक्रेट ऑफ देवकाली’? यह तो फिल्म के रिलीज के बाद ही पता चलेगा। बहरहाल, हाल में इस फिल्म के लिए संजय मिश्रा, प्रोड्यूसर- डायरेक्टर- एक्टर नीरज चौहान और एक्ट्रेस भूमिका गुरुंग ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। पेश है कुछ खास अंश .. सवाल/ नीरज- आपके लिए ‘द सीक्रेट ऑफ देवकाली’ क्या है? जवाब- यह एक ऐसा सपना है जो बहुत साल पहले शुरू हुआ था। इसका अंत अभी तक नहीं हुआ है और ना ही आगे होगा। क्योंकि इसके बाद भी बहुत सारी प्लानिंग है। यह फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित है। फिल्म में यह बताने की कोशिश की गई है कि जानवरों से प्रेम कीजिए, वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इस फिल्म में संस्कृति और प्रकृति के संरक्षण की बात की गई है। यह फिल्म दर्शकों को एक अलग दुनिया में लेकर जाएगी। सवाल/ संजय मिश्रा- हर किरदार में आप खुद को कैसे ढाल लेते हैं, जब आपको इस बार थ्रिलर फिल्म के लिए अप्रोच किया गया तब आपका क्या रिएक्शन था? जवाब- मैं एक्टिंग के लिए ही पैदा हुआ हूं। हर इंसान अलग-अलग काम के लिए पैदा होता है। जिसमें उसको मजा आता है। मुझे अलग-अलग किरदार निभाने में मजा आता है। रही बात इस फिल्म की, तो मैं यह सोचकर क्यों काम करूं कि यह थ्रिलर फिल्म है। कोई भी फिल्म हो, मेरा रिएक्शन नॉर्मल ही होता है। ‘द सीक्रेट ऑफ देवकाली’ का सब्जेक्ट बहुत अलग है। सबसे बड़ी बात यह है कि नीरज ने इस फिल्म में साउंड से बहुत खेला है। साउंड एक ऐसी चीज है जो दर्शकों को बांधकर रखती है। ऐसी फिल्में मेरे लिए सोची जा रही हैं यहीं अपने आप में एक रोमांच है। सवाल/ नीरज- पुष्पा 2 में अर्धनारीश्वर वाले सीन की काफी चर्चा हुई, जब कि इस तरह का सीन आपकी फिल्म में पहले से ही है। क्या आपको लगता है कि अगर आपकी फिल्म पहले रिलीज हुई होती तो उस सीन का कुछ और इम्पैक्ट होता? जवाब- हमारी फिल्म तो पिछले साल दिसंबर में ही पूरी हो गई थी। अब रिलीज हो रही है। इस फिल्म की कहानी पर पिछले आठ साल से काम कर रहा हूं। रही बात ‘पुष्पा 2’ में अर्धनारीश्वर वाले सीन की, तो उसकी सिचुएशन अलग थी। हमारी फिल्म का सब्जेक्ट और उस सीन की सिचुएशन ‘पुष्पा 2’ से काफी अलग है। अर्धनारीश्वर वाले सीन के लिए मैंने तीन महीने तक काम किया था, लेकिन किसी को उस सीन के बारे में पता नहीं था। जब कैमरे के सामने आया तब सबको पता चला। उस सीन की शूटिंग के दौरान मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई शक्ति मेरे अंदर प्रवेश कर रही है। उसे 35 मिनट तक सिंगल शॉट में शूट किया। उस शॉट को फिल्म रिलीज के बाद अलग से अपलोड करेंगे। सवाल/ संजय मिश्रा- जब ‘सिकंदर’ जैसी फिल्में नहीं चलती हैं तो चर्चा होती हैं कि बॉलीवुड से बेहतर काम साउथ में हो रहा है। यहां के मेकर्स के पास अच्छे कंटेंट नहीं हैं? साउथ के स्टार्स अपने फैंस से कनेक्ट कर पाते हैं, जबकि यहां के नहीं? जवाब- हमारे देश का सिनेमा बहुत ही अच्छा है। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि उसे हम बांट क्यों रहे हैं। सिनेमा को बांटने की जरूरत नहीं है। अगर साउथ की कोई फिल्म ऑस्कर से कुछ लेकर आती है, या सत्यजीत रे की बंगाली फिल्में ऑस्कर तक गईं। तो यह पूरे हिंदुस्तान के लिए गर्व की बात है। रही बात साउथ और बॉलीवुड की, तो हर सिनेमा का एक दौर होता है। सवाल- लोगों का यह भी कहना है कि बॉलीवुड की फिल्में इसलिए नहीं चल रहीं हैं, क्योंकि अच्छे लेखकों को मौका नहीं मिलता है? जवाब- सबसे बड़ी विडंबना यह है कि बॉलीवुड की फिल्में लोग थिएटर में जाकर नहीं देखते हैं। टिकट इतने महंगे कि लोग इस बात का इंतजार करते हैं कि जब किसी ओटीटी पर फिल्म आएगी तो देख लेंगे। टिकट की प्राइज काम होनी चाहिए। रही बात अच्छे लेखकों को मौका ना मिलने की, तो अगर ऐसी बात होती तो वेब सीरीज ‘पंचायत’ और ‘छावा’ जैसी फिल्में नहीं बनती। सवाल/भूमिका- आपने टीवी पर बहुत काम किए हैं। जब आपने फिल्मों के लिए कोशिश की तो कभी टीवी टैग की वजह से प्रॉब्लम का सामना करना पड़ा? जवाब- आज भी टीवी टैग वाले प्रॉब्लम का सामना कर रही हूं। लोग यह भूल जाते हैं कि बहुत सारे अच्छे कलाकार टीवी इंडस्ट्री से ही आए हैं। फिल्मों के लिए मैंने टीवी से दो साल का ब्रेक लिया था। फिल्म के लिए जब भी कहीं प्रोफाइल भेजी, तो लोग यहीं कहते थे कि टीवी एक्टर नहीं चाहिए। फ्रेशर चलेगा, लेकिन टीवी एक्टर नहीं चलेगा। सुनकर बहुत बुरा लगता था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि दुनिया समाप्त हो गई है। बहुत सारे लोग हैं जो टीवी एक्टर की वैल्यू को समझते हैं। नीरज को पता था कि मैं टेलीविजन की आर्टिस्ट हूं, फिर भी इन्होंने मुझे मौका दिया। इनके जैसे बहुत सारे हैं। जो इस बात में विश्वास करते हैं कि कलाकार सिर्फ कलाकार होता है। भले ही वह किसी माध्यम में काम करे। सवाल/नीरज- इस फिल्म के माध्यम से क्या मैसेज देना चाहते हैं? जवाब- प्रकृति से हमें प्रेम करना चाहिए। हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संभालना चाहिए। वन्य जीवों की रक्षा करनी चाहिए। अगर प्रकृति के साथ हम खिलवाड़ करेंगे तो कभी ना कभी प्रकृति की तरफ से दंड तो मिलेगा ही। इसलिए संस्कृति और प्रकृति को साथ लेकर चलना चाहिए। इस फिल्म के माध्यम से यही संदेश देने की कशिश की गई है।