अमेरिकी यूट्यूबर बिना इजाजत भारत के प्रतिबंधित सेन्टिनल द्वीप पहुंचा:डाइट कोक और नारियल छोड़कर आया, वीडियो भी बनाया; 14 दिन की रिमांड
भारतीय पुलिस ने 24 साल के एक अमेरिकी यूट्यूबर को हिंद महासागर के एक प्रतिबंधित द्वीप पर पहुंचने और वहां की जनजाति से संपर्क करने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार किया है। यह यूट्यूबर अमेरिकी राज्य एरिजोना के रहने वाल है। उसका नाम मिखायलो विक्टोरोविच पोलियाकोव है। 29 मार्च को वह भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप के प्रतिबंधित सेन्टिनेल द्वीप पर पहुंचा था। ह वहां रहने वाली सेन्टिनेली जनजाति से नहीं मिल पाया तो डाइट कोक और नारियल छोड़कर आया था। उसे 31 मार्च को पोर्ट ब्लेयर में गिरफ्तार किया गया था। एक स्थानीय कोर्ट ने पिछले हफ्ते उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा था। उसे 17 अप्रैल को दोबारा कोर्ट में पेश किया जाएगा। उसे पांच साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। GPS नेविगेशन का इस्तेमाल कर सेन्टिनेली द्वीप पहुंचा था पोलियाकोव पुलिस ने बताया कि पोलियाकोव GPS नेविगेशन का इस्तेमाल करके इस द्वीप तक पहुंचा था। द्वीप पर उतरने से पहले उसने बाइनोकुलर्स से द्वीप का सर्वे किया। वह करीब एक घंटे तक द्वीप पर रुका। इस दौरान उसने सीटी बजाकर सेन्टिनेली लोगों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने उसे जवाब नहीं दिया। इसके बाद उसने एक डाइट कोक और नारियल को वहां रखा, अपना वीडियो बनाया और रेत के कुछ नमूने लेकर वहां से वापस लौट गया। वापस जाते समय एक स्थानीय मछुआरे ने उसे देख लिया और प्रशासन को सूचना दी, जिसके बाद पोर्ट ब्लेयर में उसे गिरफ्तार किया गया। उसके खिलाफ भारतीय कानून के उल्लंघन का केस दर्ज किया गया। पुलिस बोली- यूट्यूबर ने सेन्टिनेली लोगों का जीवन खतरे में डाला पुलिस ने कहा कि पोलियाकोव ने इस द्वीप पर जाने से पहले समुद्री कंडीशन, ज्वार और द्वीप तक पहुंचने के रास्ते की गहरी रिसर्च की थी। पुलिस की जांच में ये भी सामने आया कि इससे पहले अक्टूबर और जनवरी में भी वह इस द्वीप पर जाने की योजना बना चुका था। पुलिस ने बताया कि पोलियाकोव की हरकत ने सेन्टिनेली लोगों की सुरक्षा और जीवन को खतरे में डालने का काम किया है। इन लोगों की सदियों से चली आ रही जीवनशैली को सुरक्षित रखने के लिए यहां बाहरी लोगों का आना कानूनन प्रतिबंधित किया गया है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर ये सेन्टिनेली जनजाति कौन है, जिसे दुनिया की सबसे रहस्यमयी और अलग-थलग जनजाति का दर्जा मिला है… कौन हैं सेन्टिनेली जनजाति के लोग, इस द्वीप तक कैसे आए? माना जाता है कि सेन्टिनेली लोग अफ्रीका से निकले मानव समूहों के वंशज हैं। दरअसल मानव वैज्ञानिकों के मुताबिक, आधुनिक मानव यानी होमो सेपियंस की उत्पत्ति करीब 2 लाख साल पहले अफ्रीका में हुई थी। लगभग 60,000 से 70,000 साल पहले, एक छोटा समूह अफ्रीका से निकलकर पूर्व की ओर चला, जो बाद में पूरी दुनिया में फैला। इस प्रवास के दौरान कुछ समूहों ने समुद्र के रास्ते भारत के दक्षिणी तट, अंडमान द्वीप समूह और दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर यात्रा की। माना जाता है कि सेन्टिनेली, जारवा, ओंगे जैसी अंडमान की आदिम जनजातियां उन्हीं शुरुआती प्रवासी समूहों के वंशज हैं। संभावना है कि ये लोग नावों या बेड़ों की मदद से द्वीपों तक पहुंचे और फिर यहीं बस गए। ये रहस्यमयी और अलग-थलग क्यों कहे जाते हैं? सेन्टिनेली जनजाति को दुनिया की सबसे रहस्यमयी जनजाति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे आज भी आधुनिक दुनिया से पूरी तरह कटे हुए हैं और किसी भी बाहरी व्यक्ति या समाज से संपर्क नहीं रखते। नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली यह जनजाति हजारों साल से उसी स्थान पर रह रही है और इन्होंने अपनी पारंपरिक जीवनशैली को आज तक बिल्कुल नहीं बदला है। उनकी भाषा, रीति-रिवाज, सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक विश्वासों के बारे में बाहरी दुनिया को कोई जानकारी नहीं है। वे बाहरी लोगों के द्वीप पर आने को खतरा मानते हैं और अक्सर आक्रामक प्रतिक्रिया देते हैं। इस द्वीप के पांच किमी के दायरे में लोगों का आना प्रतिबंधित है। इसकी आबादी कई हजार साल से दुनिया से दूर है। यहां रहने वाले लोग तीर और कमान लेकर जानवरों का शिकार करते हैं। यहां अगर कोई बाहरी व्यक्ति पहुंच जाए तो उस पर भी तीरों से हमला करते हैं। 2008 में सेन्टिनेली लोगों ने ईसाई मिशनरी को तीरों से मार डाला था नवंबर 2018 में एक युवा अमेरिकी मिशनरी जॉन एलन चौ बंगाल की खाड़ी में नॉर्थ सेन्टिनल द्वीप जाने के लिए निकला। उसका मकसद था कि वह इस पृथ्वी की सबसे अलग-थलग जनजाति तक ईसा मसीह का संदेश पहुंचाए। भारत सरकार ने सेंटिनल द्वीप पर किसी भी तरह के प्रवेश को कानूनी रूप से प्रतिबंधित कर रखा था, लेकिन जॉन ने इस नियम को दरकिनार कर दिया। उसने स्थानीय मछुआरों को पैसे देकर नाव की व्यवस्था की, फुटबॉल और कैंडी जैसे कुछ तोहफे रखे। द्वीप के पास पहुंचकर वह पहले रुका और एक दिन वहां के लोगों की गतिविधियां देखीं। उसने अपनी डायरी में लिखा कि जब उसने पहली बार सेन्टिनेली लोगों को देखा, तो वे नंगे थे, तीर-कमान लिए हुए थे। उसने उन्हें ‘दुनिया के सबसे प्यारे लेकिन सबसे खोए हुए लोग’ कहा। उसने दो बार जनजाति से संपर्क करने की कोशिश की और कुछ गिफ्ट देने की थी कोशिश की, लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ। 16 नवंबर 2018 की सुबह जॉन ने आखिरी बार द्वीप पर उतरने की कोशिश की। मछुआरों ने दूर से देखा कि जैसे ही जॉन किनारे के पास पहुंचा, सेन्टिनेली लोगों ने उस पर तीरों की बौछार कर दी। उनमें से एक तीर सीधे उसके शरीर में लगा। और फिर जनजाति के लोगों ने उसका शव घसीटा और उसे रेत में दफना दिया। अमेरिकी नागरिक की हत्या के बावजूद भारत सरकार ने दखल नहीं किया जब ईसाई मिशनरी की हत्या की खबर दुनिया तक पहुंची, तो हंगामा मच गया। कुछ लोगों ने जॉन को धार्मिक शहीद कहा, जिसने अपने विश्वास और बाइबिल की सेवा में जान दे दी। वहीं, कई लोगों ने प्रतिबंधित द्वीप पर जाने के उसके कदम को गैर-जिम्मेदार, अवैध और खुद के साथ उस जनजाति के लिए भी खतरनाक बताया। ऐसा इसलिए क्योंकि बाहरी बीमारियों के प्रति सेन्टिनेली लोग इम्यून नहीं थे। भारत सरकार ने भी जॉन की मौत पर शोक तो जताया, लेकिन सेन्टिनेली जनजाति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बजाय सरकार ने स्पष्ट किया कि इस जनजाति को उनके हाल पर छोड़ देना ही सबसे बेहतर है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह केवल उनके अस्तित्व की रक्षा नहीं, बल्कि मानवता के सबसे पुराने अध्यायों में से एक को जिंदा रखने की कोशिश भी है।