Sunday, July 20, 2025
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23 साल बाद फिल्म ‘तुम बिन’ फिर से रिलीज:राकेश बापट बोले- पुरानी फिल्मों में ठहराव और गहराई होती थी, अब कमर्शियल हो गया है

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फिल्म ‘तुम बिन’, जो 2001 में दर्शकों के सामने आई थी, अब 23 साल बाद फिर से थिएटर में आ रही है। इस खास मौके पर, दैनक भास्कर से बातचीत करते हुए एक्टर राकेश बापट ने पुरानी फिल्मों को फिर से रिलीज करने के बारे में अपनी राय दी। उन्होंने बताया कि ये ट्रेंड नई पीढ़ी के लिए कितना जरूरी है और फिल्म बनाने में जिम्मेदारी का अहसास कराता है। पढ़िए बातचीत के कुछ खास अंश: आजकल पुरानी फिल्मों को फिर से रिलीज किया जा रहा है, जैसे ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘तुम्बाड’। इस ट्रेंड के बारे में आपका क्या कहना है? मुझे लगता है कि ये एक अच्छा ट्रेंड है, क्योंकि कहते हैं, ‘ओल्ड इज गोल्ड’। खासकर नई पीढ़ी के लिए ये फिल्में देखना बहुत जरूरी है। मैं कह सकता हूं कि हमारे समय की फिल्मों का सफर बहुत लंबा है। उन फिल्मों में गहरा मतलब होता था। लिखाई भी अच्छी होती थी। गाने भी बहुत अच्छे होते थे। आजकल जो गाने हैं, उनमें बस मुखड़ा होता है, कुछ वर्सेस होते हैं, पर समझ में नहीं आते। ये ट्रेंड हमें हमारी जड़ों की ओर ले जाता है, जहां फिल्म बनाना एक शौक था, ये सिर्फ बिजनेस नहीं था। क्या आपको लगता है कि पुराने समय की फिल्में आज की पीढ़ी के लिए फायदेमंद हैं? हां, ये सही है। ये आपको बताती हैं कि फिल्म बनाते समय जिम्मेदारी होती है। चाहे वो प्यार की कहानी हो या युद्ध की कहानी, उसे अच्छे से दिखाना जरूरी होता है। पहले, जैसे सलीम-जावेद या गुलजार जो लिखते थे, उनमें ठहराव और मतलब होता था, बहुत गहरा अर्थ होता था। मैं खुश हूं कि वो फिल्में अब वापस आ रही हैं, क्योंकि जो नई पीढ़ी है, उन्हें ये सब नहीं पता है। कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो जाती हैं लेकिन बाद में कल्ट फिल्म बन जाती हैं। क्या आपको लगता है कि इस ट्रेंड से लोग अच्छी फिल्मों का मतलब समझ पाएंगे? बिल्कुल, मुझे लगता है कि ये जरूरी है। अच्छी फिल्में बार-बार दिखानी चाहिए। आजकल जो फिल्में बनती हैं, मुझे सच में समझ में नहीं आतीं। मैं कुछ ऐसा देखना चाहता हूं जिससे मुझे कुछ सीखने को मिले या कुछ अच्छा देखने को मिले। फिल्म बनाते समय सेंस बनाना बहुत जरूरी होता है। पिछले 20 सालों में फिल्म बनाने में क्या बदलाव आया है? 20 साल में बहुत बड़ा बदलाव आया है। पहले लिखाई और गाने पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था। फिर 2000 के पहले ऑडियंस में जब फिल्में सफल होने लगीं, तो ये फैक्ट्री स्टाइल हो गया। पहले एक फिल्म में होना बहुत खास होता था। अब ये बहुत कमर्शियल हो गया है। पहले, हमें नर्वस होते थे कि हम बड़े हो जाएंगे तो कैसे दिखेंगे। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। डिजिटल ने सब कुछ बदल दिया है। अब सब कुछ डिजिटल हो गया है। ‘बिग बॉस’ के बाद क्या और रियलिटी शो के ऑफर आए हैं? सच कहूं तो, मैं रियलिटी शो के लिए नहीं बना हूं। ‘बिग बॉस’ के लिए भी मैं पहले तैयार नहीं था, मेकर्स ने मुझे मना लिया। मुझे रियलिटी शो समझ में नहीं आते, और मैं जहां समझ नहीं पाता, वहां क्यों जाऊं। मेरी आदत नहीं है भागने की। मैं जो भी करूं, उसमें खुशी होनी चाहिए। क्या आपकी पर्सनल लाइफ की चर्चा आपको परेशान करती है? नहीं, बिल्कुल नहीं। हर किसी की पर्सनल लाइफ होती है। ये एक पार्ट है। आपको इसे ग्रेस के साथ एक्सेप्ट करना चाहिए।

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