1971 जंग में शहीदों का बांग्लादेश ने अब किया सम्मान:भिंड में जवानों के घर पहुंची शील्ड, शेख हसीना की 7 साल पुरानी चिट्ठी भी आई
1971 की भारत-पाक जंग में अपने प्राण न्योछावर करने वाले जवानों की शहादत को 54 साल बाद बांग्लादेश सरकार की ओर से सम्मान मिला है। बांग्लादेश सरकार ने शहीदों के परिवार को गार्ड ऑफ ऑनर, सम्मान पत्र और शील्ड भेजी है। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना का सम्मान पत्र भी है। इसमें 27 नवंबर 2018 की तारीख लिखी हुई है। इतने सालों बाद सम्मान मिलने पर शहीद पति रामलखन गोयल की 70 वर्षीय पत्नी लीला देवी भावुक हो गईं। वे कहती हैं, बांग्लादेश सरकार की ओर से मिले सम्मान पत्र में लिखा है- ‘आपके परिजन की शहादत हमारे लिए अमूल्य है। भले ही यह सम्मान 54 साल बाद आया हो, लेकिन इससे हमारे दिल को सुकून मिला है।’ बता दें कि 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। उस वक्त पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा, जो आज का बांग्लादेश है, अलग होने की जंग लड़ रहा था। भारत ने बांग्लादेश की आजादी में अहम भूमिका निभाई और पाकिस्तानी फौज को शिकस्त दी। इस जंग में भारतीय सैनिक भी शहीद हुए थे। इसमें भिंड जिले के 12 जवान भी शामिल थे। भास्कर ने शहीद जवानों के परिवार से बात की। सम्मान लेकर आए जवान ने शहीद की पत्नी के छुए पैर
भिंड जिले की शहीद कॉलोनी में रहने वाली 70 वर्षीय लीला देवी गोयल ने बताया – दो दिन पहले उनके घर के सामने आकर आर्मी की एक गाड़ी रुकी। गाड़ी से उतरे जवानों ने पति का नाम लेते हुए घर पूछा। मैंने अपनी पहचान बताई। दोनों जवान मेरे पैरों में झुक गए। इसके बाद ससम्मान बांग्लादेश सरकार की ओर से भेजा गया गार्ड ऑफ ऑनर, सम्मान पत्र, शील्ड और एक विशेष पुस्तक भेंट की। पुस्तक में उन सभी वीर सपूतों के नाम दर्ज थे, जिन्होंने 1971 की जंग में वीरगति पाई। इस मौके पर आर्मी जवानों ने कहा- हर साल 1971 की जंग के शहीदों को याद किया जाता है, लेकिन इस बार बांग्लादेश ने विशेष तौर पर गार्ड ऑफ ऑनर देने का फैसला लिया। लीला देवी ने कहा- 1971 की जंग में पति की शहादत के बाद से अब तक सिर्फ यादें ही सहारा रहीं। वे कहती हैं, तब न पार्थिव शरीर आया, न कपड़े, न आखिरी दर्शन हुए। लीला देवी बोलीं- शादी के तीन साल बाद हो गए थे शहीद
शहीद रामलखन गोयल की पत्नी लीला देवी ने कहा- “ये सम्मान तो अच्छा है, पर बहुत देर कर दी। मेरे पति ने देश के लिए जान दी। उस दिन के बाद से मैं अकेली हूं। शादी के दो से तीन साल के बाद ही पति शहीद हो गए थे। शहादत के बाद न उनका पार्थिव शरीर मिला, न कोई कपड़ा, न टोपी। उम्र गुजर गई इंतजार में। अब जवानों ने आकर जो सम्मान दिया, उससे दिल को कुछ सुकून मिला है।” लीला देवी का कहना है कि उन दिनों मेरी उम्र 14 साल थी। शादी के बाद मेरा गौना भी नहीं हुआ था, तब पति के शहीद होने की खबर तार के माध्यम से आई थी। जब माता-पिता को खबर लगी तो वे मुझे ससुराल लेकर आए। एक साल तक परिवारवालों ने पति के वापस आने का इंतजार किया। ओझा तांत्रिकों से पूछते थे। मंदिरों में पूजा पाठ का भी संकल्प लेते थे। सम्मान मिला तो ऐसा लगा, मानो पति ने पत्र भेजा हो
लीला देवी ने कहा- पति का इंतजार आज भी है। जब अकेले में रहती हूं तो याद आती है। रो कर फिर आंसू पोंछ लेती हूं। सरकार ने पेंशन दी। मकान दिया। सुविधाएं दी, लेकिन पति के बिना सब अधूरा है। मेरी कोई संतान न होने पर देवर के लड़के को गोद लिया है। पूरा जीवन दूसरों पर आश्रित होकर निकाला है। अब बूढ़ी हो गई हूं, आज भी पति के न होने का दुख मन को कचोटता है। यह सम्मान पाकर ऐसा लगा कि मानों मेरे पति ने मुझे पत्र भेजा है। इसे पाकर खुशी तो मिली है, लेकिन बांग्लादेश सरकार ने भी देरी से सुध ली है। राजेश्वरी बोलीं- पति को अंतिम बार देख भी नहीं पाई थी
बांग्लादेश से 54 साल बाद मिले सम्मान ने शहीद जयसिंह की पत्नी राजेश्वरी को भावुक कर दिया। उन्होंने बताया कि यह सम्मान उनके लिए बहुत खास है, क्योंकि जब उनके पति भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे। उस वक्त वे उनका चेहरा भी अंतिम बार नहीं देख सकी थीं। राजेश्वरी बताती हैं, जब मेरे पति शहीद हुए, उस समय मेरी उम्र करीब 13 से 14 वर्ष रही होगी और पति जयसिंह 18-19 साल के थे। उन्हें फौज में भर्ती हुए सिर्फ एक साल हुआ था कि 1971 का युद्ध शुरू हो गया और वे देश के लिए शहीद हो गए। शासन की ओर से मिले सहयोग पर वे कहती हैं- शुरुआत में मुझे सिर्फ 133 रुपए पेंशन मिलती थी, लेकिन अब यह बढ़कर 40 हजार रुपए हो गई है। इसके अलावा सरकार की ओर से एक मकान भी मिला है। राजेश्वरी ने बताया कि बांग्लादेश सरकार से प्राप्त यह सम्मान उनके लिए बहुत मायने रखता है। यह सम्मान उन्हें उनके शहीद पति की याद दिलाता है और वर्षों बाद उन्हें गर्व और संतोष का अनुभव हुआ है। सम्मान पत्र में लिखा – बांग्लादेश का इतिहास वीर भारतीय शहीदों के खून से लिखा गया
बांग्लादेश की ओर से भेजे गए सम्मान-पत्र में लिखा है.. बांग्लादेश का इतिहास देश के वीर स्वतंत्रता सेनानियों और वीर भारतीय शहीदों के खून से लिखा गया है। राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के आह्वान पर, उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे से बांग्लादेश को आज़ाद कराने के लिए साथ मिलकर लड़ाई लड़ी। दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई के दौरान, स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कई भारतीय सशस्त्र बलों के जवान युद्ध में शहीद हुए। स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की मान्यता स्वरूप, हमारी सरकार ने भारतीय सशस्त्र बलों के 1,600 शहीदों को ‘मुक्तियुद्ध सम्मान’ देने का निर्णय लिया है। इनमें से, मैंने 7 अप्रैल 2017 को भारत की आधिकारिक यात्रा के दौरान सात शहीदों के परिजनों को यह सम्मान सौंपा। बांग्लादेश की जनता और अपनी ओर से, मैं 1971 के हमारे मुक्ति संग्राम में सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सशस्त्र बलों के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। 7 मार्च 1971 के ऐतिहासिक भाषण में, राष्ट्रपिता ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का आह्वान किया था। बंगबंधु ने कहा था, “इस बार की लड़ाई हमारी मुक्ति की लड़ाई है, इस बार की लड़ाई हमारी आज़ादी की लड़ाई है।” उन्होंने 26 मार्च 1971 को स्वतंत्रता की घोषणा की थी, इससे पहले कि उन्हें गिरफ्तार किया गया। बंगबंधु के इस आह्वान पर पूरे देश ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अंततः 16 दिसंबर 1971 को विजय प्राप्त हुई। हम यह संकल्प लेते हैं कि शहीदों के सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने के लिए एक साथ मिलकर आगे बढ़ेंगे। मेरी हार्दिक संवेदना और कृतज्ञता सभी शहीद परिवारों के प्रति है। भगवान उन बहादुर आत्माओं को शांति दे! बांग्लादेश-भारत मित्रता अमर रहे। शेख हसीना 2018 में भेजा सम्मान पत्र, इतनी देरी से क्यों पहुंचा, कारण स्पष्ट नहीं
बांग्लादेश द्वारा ये सम्मान सन् 2018 में दिया जाना था, लेकिन किन्हीं कारण से यह अब तक मिल नहीं पाया था। इस सम्मान पत्र में बांग्लादेश की तब की प्रधानमंत्री शेख हसीना और मोहम्मद अब्दुल हमीद के हस्ताक्षर हैं। 1971 की जंग को भले इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए 54 साल हो गए हों, पर शहीदों की शहादत आज भी अमर है। बांग्लादेश सरकार एक सम्मान नहीं, बल्कि उन वीर सपूतों को सच्ची श्रद्धांजलि भी दी है, जिन्होंने नए राष्ट्र की नींव अपने लहू से रखी। भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने भी शहीद परिवारों तक बांग्लादेश से आए इस सम्मान को पहुंचाने पर सेना का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि वीरों का सम्मान हर हाल में होना चाहिए। जिला प्रशासन भी शहीद परिवारों की समस्याओं के निराकरण के लिए तत्पर रहेगा। रिटायर्ड सूबेदार बोले-93 हजार सैनिकों को बंदी बनाया था रिटायर्ड सूबेदार मेजर राकेश सिंह कुशवाह का कहना है कि वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें भारत ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को बंदी बनाया था और इसी युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ।
हाल ही में बांग्लादेश सरकार द्वारा जो सम्मान प्रदान किया गया है, उसके पीछे यह भी एक कारण माना जा सकता है कि वर्ष 2018 से कुछ वर्षों तक भारत और बांग्लादेश के संबंधों में तनाव की स्थिति बनी रही। ऐसे में यह सम्मान विलंब से प्रदान किया गया ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ माना जा सकता है, जो इन शहीदों को पहले ही दिया जाना चाहिए था।