हिंदी पुस्तक “बैंकिंग की अनंत सीमाएं” का विमोचन:लेखक मोहन टांकसाले बोले- किताब 60 वर्षों के अनुभव का सार, युवा बैंकरों को मार्गदर्शन मिलेगा
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुंबई में एक समारोह में अनुभवी बैंकर मोहन टांकसाले की पुस्तक “बैंकिंग की अनंत सीमाएं” के हिंदी संस्करण का विमोचन किया गया। यह उनकी अंग्रेजी पुस्तक “Banking Beyond Borders” का हिंदी अनुवाद है। इसका ट्रांसलेशन सतीश मुक्ते ने किया है। इस अवसर पर बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर और CEO रजनीश कर्नाटक मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। वहीं इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) के वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन केतन सैया स्पेशल गेस्ट थे। पुस्तक विमोचन समारोह टांकसाले ने इस अवसर पर अपनी यात्रा और पुस्तक लेखन के पीछे की प्रेरणा साझा की। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक उनके 60 वर्षों के बैंकिंग अनुभव का सार है, जिसे वे समाज को वापस देना चाहते हैं। पुस्तक का उद्देश्य युवा बैंकरों, बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश करने की इच्छा रखने वाले छात्रों और बैंकिंग इतिहास में रुचि रखने वालों को मार्गदर्शन प्रदान करना है। पुस्तक का हिंदी अनुवाद सतीश मुक्ते ने किया, जिसमें जयश्री पाठक और उनकी बेटी ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया। मराठी संस्करण का अनुवाद राजीव जोशी और सुनील चौहान ने किया, जिसका विमोचन 30 अप्रैल को हुआ था। बीएनपी परिबास मलेशिया के पूर्व निदेशक शरद कुमार ने पुस्तक की प्रस्तुति दी और इसके महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने इसे युवा बैंकरों के लिए एक कार्यपुस्तिका और बैंकिंग इतिहासकारों के लिए एक मूल्यवान दस्तावेज बताया। रजनीश कर्नाटक बोले- यह पुस्तक बैंकिंग क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगी मुख्य अतिथि रजनीश कर्नाटक ने टांकसाले को उनके योगदान के लिए बधाई दी और कहा कि यह पुस्तक बैंकिंग क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगी। उन्होंने बताया कि बैंक ऑफ इंडिया ने पुस्तक के अंग्रेजी संस्करण की 500 प्रतियां खरीदी थीं, जिन्हें वरिष्ठ अधिकारियों के बीच वितरित किया गया। पुस्तक को सरल भाषा में लिखा गया है, जो इसे सभी स्तर के पाठकों के लिए उपयोगी बनाता है। केतन सैया ने अपने संबोधन में बैंकिंग और चार्टर्ड अकाउंटेंसी के बीच सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने ICAI की ओर से इस आयोजन को समर्थन देने पर गर्व व्यक्त किया और भविष्य में ऐसे सहयोगी प्रयासों की अपील की। पैनल चर्चा: बैंकिंग के समकालीन मुद्दे समारोह में एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई, जिसमें टी. ललिता (पूर्व प्रबंध निदेशक, धनलक्ष्मी बैंक), मोहित कोडनानी (महाप्रबंधक, आईटी, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया), सुमित श्रीवास्तव (महाप्रबंधक, कासा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया) और शरद कुमार शामिल थे। चर्चा में बैंकिंग अनुपालन, डिजिटल समावेशन और कासा (करंट और सेविंग अकाउंट) जुटाने की चुनौतियों जैसे विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। ग्रंथाली प्रकाशन की भूमिका ग्रंथाली प्रकाशन की प्रतिनिधि धनश्री धव ने अपने विचार साझा करते हुए बताया कि उनकी संस्था ने पिछले 50 वर्षों में मराठी साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हाल ही में पुणे में ग्रंथाली का स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित किया गया था। उन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित करने के अवसर को गर्व का विषय बताया और बैंकों से साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजनों में सहभागिता की अपील की। मोहन टांकसाले की यात्रा मोहन टांकसाले ने 19 वर्ष की आयु में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में एक लिपिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, और फिर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक के रूप में काम किया। वर्तमान में वे Swift इंडिया और कई फिनटेक कंपनियों के रणनीतिक सलाहकार हैं। उनकी पुस्तक में उनके व्यक्तिगत अनुभवों के साथ-साथ भारतीय बैंकिंग के विकास की कहानी को भी समेटा गया है। टांकसाले ने अपने संबोधन में समाज को वापस देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा, “मुझे जो अवसर मिले, वे ईश्वर की कृपा और मेरे सहयोगियों के समर्थन से संभव हुए। यह पुस्तक मेरे अनुभवों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का एक प्रयास है।” इस पुस्तक की कीमत ₹350 है, लेकिन आयोजन में ₹200 की रियायती कीमत पर उपलब्ध थी। समारोह के अंत में सभी अतिथियों को गणपति का प्रसाद और चाय-नाश्ते का आनंद लेने के लिए आमंत्रित किया गया। बुक रिव्यू अरुणा शर्मा (पूर्व सचिव, भारत सरकार) ने इस बुक का रिव्यू करते हुए लिखा- ये बुक शुरू से अंत तक पढ़ने में आनंददायक है। मोहन टांकसाले ने भारत में बैंकिंग क्षेत्र के विकास, ग्राहकों के अनुभवों को बेहतर बनाने के लिए तकनीकी सुधारों को तेजी से आत्मसात करने, और आर्थिक स्थिति में सबसे निचले स्तर तक पहुंचने में सक्रिय भागीदार होने की अपनी यात्रा को जोड़ा है। यह पुस्तक उन सभी लोगों को अवश्य पढ़ना चाहिए जो न केवल बैंकर हैं बल्कि वित्तीय संस्थानों के साथ जुड़े हैं, ताकि वे भारत में बैंकिंग के विकास और श्री टांकसाले जैसे व्यक्तियों और पूरे बैंकिंग समुदाय के योगदान की सराहना कर सकें। उस पीढ़ी ने सरकार के एमआईएस से जुड़कर प्रौद्योगिकी आधारित बैंकिंग को बदलने में सक्षम बनाया और पारदर्शिता लाई। श्री टांकसाले को साधुवाद।