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सोशल मीडिया टैलेंट पर म्यूजिक कम्पोजर्स सचिन-जिगर बोले:फेम तो मिलता है, लेकिन सीखना जरूरी है; लोग जल्दी फेमस होकर मेहनत भूल जाते हैं

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संगीत की दुनिया में सचिन-जिगर की पहचान बहुत खास है। उन्होंने हाल ही में सिंगिंग रियलिटी शो ‘सा रे गा मा पा’ पर बतौर मेंटर्स डेब्यू किया है। दैनि‍क भास्कर से बातचीत के दौरान, दोनों ने अपने अनुभवों, सोशल मीडिया के असर और म्यूजिक इंडस्ट्री में रिजेक्शन के बारे में खुलकर चर्चा की। सचिन ने अवार्ड्स की अहमियत बताई, जबकि जिगर ने नए टैलेंट को सपोर्ट करने के अपने इरादों को साझा किया। पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश: ‘सा रे गा मा पा’ पर बतौर मेंटर्स डेब्यू कर के आप लोग कितने उत्साहित हैं? जिगर: बहुत ज्यादा। कभी-कभी बतौर बॉलीवुड कम्पोजर्स, ग्रासरूट लेवल पर जो टैलेंट है, उनसे मिलना मुश्किल हो जाता है। लेकिन ‘सा रे गा मा पा’ एक बढ़िया मौका है ऐसे टैलेंट से मिलने का, उनकी जर्नी को समझने और सीखने का। मैं और सचिन बहुत एक्साइटेड हैं क्योंकि इससे पहले भी हम नए टैलेंट को मौका देने में हमेशा आगे रहते हैं। क्योंकि जब हम शुरू कर रहे थे, तब हम भी बिना अनुभव के थे। हमारा भी कोई इंडस्ट्री में नहीं था। जो मौका हमें मिला था, अब हमारी बारी है दूसरों को वो मौका देने की। पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया टैलेंट के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है। इस पर आपकी क्या राय है? सचिन: बिल्कुल, सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जहांअगर आप कॉमेडी कर रहे हो, डांस कर रहे हो या सिंगर हो, तो आप आसानी से अपना टैलेंट दिखा सकते हो। ये बहुत बड़ा मौका है। हमने देखा है कि गाने, सिंगर्स, कॉमेडी वीडियो, और डांसर्स सोशल मीडिया पर वायरल हो जाते हैं। फिर उनके फॉलोवर्स भी बढ़ जाते हैं, जिससे वो अपना खुद का ओरिजिनल काम भी रिलीज कर सकते हैं। सोशल मीडिया से फायदा तो है, पर क्या आपको कोई नुकसान भी नजर आता है? जिगर: हां, फायदा तो बहुत है, पर नुकसान ये है कि कई बार लोग जल्दी फेमस हो जाते हैं और मेहनत का प्रोसेस भूल जाते हैं। सक्सेस इतनी जल्दी मिलती है कि लोग सीखने का टाइम ही नहीं लेते। हमें कई बार उनको समझाना पड़ता है कि फेम ठीक है, लेकिन सीखना भी जरूरी है। हम दोनों (सचिन और मैं) इनसे बड़े भाई की तरह मिलते हैं, प्यार से समझाते हैं और कभी-कभी डांटते भी हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि इन्हें सही रास्ते पर रखें। रिजेक्शन को आप कैसे देखते हो? सचिन: रिजेक्शन तो क्रिएटिव काम का हिस्सा है। अभी 4 दिन पहले हमने एक गाना बनाया, उस पर 15-20 दिन मेहनत की। लेकिन डायरेक्टर ने एक बार सुनकर कह दिया कि ये मेरा गाना नहीं है। हमने फिर कोशिश की, पर उन्होंने फिर वही कहा। हमने सोचा, कोई बात नहीं, नया गाना बनाएंगे। रिजेक्शन आपको बेहतर करने का मौका देता है। अगर आप उसे सही तरीके से लें, तो ये आपकी जर्नी का एक अहम हिस्सा बन जाता है। अवार्ड्स को आप कितना महत्व देते हो? सचिन: अवार्ड्स सेल्फ अप्रीसिएशन के लिए तो अच्छे होते हैं, पर मुझे नहीं लगता कि अवार्ड्स से आपका आगे का काम डिसाइड होता है। आपका आज का काम ही कल के काम का रास्ता बनाता है। फेमस होने से ज्यादा जरूरी है कि आपका काम बोले। अगर लोग आपके गाने को पसंद करते हैं, तो वही असली अवार्ड है। कभी ऐसा लगा कि कोई अवार्ड मिलना चाहिए था, लेकिन नहीं मिला? जिगर: सच कहूं तो हम दोनों कभी इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते। आज भी हम कभी-कभी खुद को पिंच करते हैं कि क्या सच में हम म्यूजिक कम्पोजर बन गए हैं? जब हम निकले थे, तब ये भी बहुत बड़ी बात लगती थी कि हम राजेश रोशन जी या प्रीतम सर के साथ काम कर रहे हैं। तो अवार्ड मिले तो खुशी होगी, लेकिन हमारी असली खुशी इस जर्नी को एंजॉय करने में है। अगर हमारे गुरु और माता-पिता खुश हों, तो वही सबसे बड़ा अवार्ड है।

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