वो सिंगर जो लता मंगेशकर को टक्कर देती थीं:कई हिट गाने गाए, फिर पाई-पाई की मोहताज हुईं, सलमान ने दवाइयों का खर्च उठाया था
1950 से 1970 के बीच, लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी की आवाजें हर जगह सुनाई देती थीं। हर रेडियो पर उनके ही गाने चलते थे, हर महफिल में उन्हीं के नगमे गूंजते थे, लेकिन उसी दौर में एक और गायिका थीं, जिनकी आवाज में सादगी थी, दर्द था और बहुत सारी भावनाएं थीं। उनका नाम था मुबारक बेगम। जिन्होंने कई फिल्मों में हिट गाने गाए, लेकिन बाद में गुमनामी में जिंदगी काटी। मुबारक बेगम ने बचपन में ऑल इंडिया रेडियो के लिए गाना शुरू किया। 1949 में उन्होंने फिल्म ‘आईए’ में पहली बार गाना गाया। इस फिल्म में उन्होंने “मोहे आने लगी अंगड़ाई, आजा आजा” गाया। इसी फिल्म में उन्होंने लता मंगेशकर के साथ एक गीत “आओ चले सखी वहां” भी गाया था। 1950 और 1960 के दशक में मुबारक बेगम ने कई मशहूर गाने गाए। 1955 में फिल्म ‘देवदास’ में उनका गाना “वो न आएंगे पलट कर” बहुत फेमस हुआ। 1958 की फिल्म ‘मधुमती’ में उन्होंने “हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे” गाया। 1961 में फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ का गाना “कभी तन्हाइयों में यूं, हमारी याद आएगी” उनका सबसे मशहूर गीत बन गया। इसके बाद उन्होंने हमराही में “मुझको अपने गले लगा लो” और फिल्म ‘जुआरी’ में “नींद उड़ जाए तेरी” जैसे हिट गाने दिए। बता दें कि मुबारक बेगम ने करीब 110 फिल्मों में 170 से ज्यादा गाने गाए। उनकी आवाज में मिठास थी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से उन्हें उतना सपोर्ट नहीं मिला। फिर धीरे-धीरे उन्हें काम मिलना बंद हो गया। 1970 के बाद मुबारक बेगम फिल्मों से दूर हो गईं, लेकिन संगीत के प्रति उनका प्यार बना रहा। बढ़ती उम्र के साथ उनकी हेल्थ बिगड़ती गई और परिवार की आर्थिक हालत भी खराब हो गई। उन्हें मुंबई के जोगेश्वरी स्थित बेहराम बाग में एक छोटे से एक कमरे वाले मकान में अपने बेटे, बहू और पोती के साथ भी रहना पड़ा। एक समय उनकी एकमात्र आय उनके दिवंगत पति की नौकरी से मिलने वाली पेंशन थी। वहीं, उनका बेटे हुसैन शेख कभी-कभार ड्राइवर के तौर पर काम करके कुछ कमाई करता था। जबकि उनकी देखभाल उनकी बहू जरीना हुसैन शेख करती थीं। एक समय हालात इतने खराब हो गए मुबारक बेगम के अस्पताल का खर्च उठाना मुश्किल हो गया, तो परिवार को मदद मांगनी पड़ी। मुबारक बेगम की बहू जरीना ने मीडिया को बताया था कि एक्टर सलमान खान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो लंबे समय से लगातार परिवार की आर्थिक मदद कर रहे थे। उन्होंने मुबारक बेगम की सारी दवाओं का खर्च उठाया था। जून 2016 में महाराष्ट्र सरकार के तत्कालीन मंत्री विनोद तावड़े ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया था। हालांकि, सरकारी योजना के तहत वह परिवार को पैसे नहीं दिला सके, लेकिन उन्होंने अपने करीबी लोगों द्वारा चलाए जा रहे एक ट्रस्ट से सहायता दिलवाई, जिससे मुबारक को कुछ आर्थिक राहत मिली। फिर 80 साल की उम्र में 18 जुलाई 2016 को उनका निधन हो गया।