Friday, March 14, 2025
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लखनऊ की गलियों में दिखेगा डिजिटल युग का प्यार:’इन गलियों में’ के डायरेक्टर- एक्टर्स बोले- हमारी फिल्म देश का आईना है

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14 मार्च को ‘अनारकली ऑफ आरा’ के डायरेक्टर अविनाश दास ‘इन गलियों में’ नाम की फिल्म लेकर आ रहे हैं। यह एक कॉमेडी ड्रामा के साथ सोशल मैसेज वाली फिल्म है। इसमें अभिनेता विवान शाह के साथ नई अभिनेत्री अवंतिका दसानी नजर आने वाली हैं। फिल्म में लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब के साथ, वहां की गलियों को दिखाया गया है। इसमें दर्शकों को लखनऊ की गलियों में डिजिटल युग का प्यार देखने मिलेगा। फिल्म के डायरेक्टर अविनाश दास, एक्ट्रेस अवंतिका और एक्टर विवान ने दैनिक भास्कर से बात की है। पढ़िए उनका इंटरव्यू… सवाल- अविनाश इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा कहां से आई? जवाब/ अविनाश- हमारे एक दोस्त हैं यश मालवीय, जो कि हिंदी के बहुत बड़े कवि भी हैं। उनके गीत बहुत मशहूर हैं। उनके छोटे भाई थे वसु मालवीय। वो हिंदी के बहुत अच्छे कथाकार थे। वसु मालवीय फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनने के लिए मुंबई आए थे। लेकिन वे हादसे में गुजर गए। लगभग बीस साल के बाद उनके बेटे पुनर्वसु ने उन्हीं के तीन कैरेक्टर को निकाल करके एक बड़ी अच्छी कहानी लिखी, जो आज के दौर का आईना है। पुनर्वसु 30-31 साल के हैं और उन्होंने उम्दा स्क्रीनप्ले लिखा है। वो मेरे पास उसे लेकर आए और कहा कि इस कहानी पर फिल्म बनानी है। मुझे लगा कि वो जिस गली, जिन किरदारों की कहानियों कहना चाहते हैं, वो गली और वो किरदार मेरा जिया हुआ है। फिर मैं लखनऊ गया और राजा बाजार की पुरानी गलियों को देखा। तब मुझे लगा कि इस कहानी की यात्रा यहां पर पूरी हो सकती है। इस तरह कहानी लखनऊ पहुंची और जमीन पर उतरी। सवाल- विवान और अवंतिका लखनऊ वालों के लिए ये शहर एक इमोशन है। आप दोनों ने लखनऊ को कैसे आत्मसात किया? जवाब/विवान- मेरे ख्याल से लखनऊ का इतिहास और जो कल्चर है, वो हमारे पूरे देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक समय पर लखनऊ भारत की राजधानी भी हुआ करती थी। हम सबके लिए लखनऊ एक बहुत ही महत्वपूर्ण जगह है। सबके लिए अपनी वजह अलग हो सकती है। जैसे कल्चरल रीजन, खानपान। खासकर के जैसे आपने कहा कि लखनऊ का जो अंदाज, तहजीब, कल्चर है। मेरे ख्याल में शायद वो सबसे स्पेशल क्वालिटी है। ये बहुत ही खूबसूरत जगह है। मुझे सच में लखनऊ से प्यार है। मैं आपको बता नहीं सकता कि मुझे इस जगह से कितना प्यार है। सवाल- अवंतिका ट्रेलर में दिख रहा कि आपने लखनऊ को पूरी तरह से अपना लिया है। अवंतिका- शुक्रिया… इसका क्रेडिट तीन लोगों को जाता है। खासकर मेरे डायरेक्टर और राइटर पुनर्वसु को। शूटिंग के पहले और सीन्स से पहले हमने बहुत ज्यादा रिहर्सल किया है। मेरे डायलेक्ट कोच नेपाल सर के साथ मैंने डिक्शन पर काफी काम किया है। लखनवी लहजा बहुत अनोखा है। हम गली के बच्चे, खाला-फूफी के साथ बैठते थे और उनसे पूछते कि अगर आपको ये बोलना हो तो कैसे बोलते? जैसे आपने मेरे किरदार को अप्रूवल दिया है, अगर ऐसा ऑडियंस भी बोल दे तो मेरे लिए बहुत अच्छी बात होगी। सवाल- लखनऊ सेक्युलरिज्म का गढ़ रहा है। आजकल के राजनीतिक माहौल में इस शहर में प्यार और सौहार्द्र को कैसे देख रहे हैं? जवाब/ अविनाश- देखिए, हिंदी के एक बहुत अच्छे कवि हैं आलोक धन्वा। उनकी एक कविता है कि कहां है वो हरे आसमानों वाला शहर बगदाद, ढूंढो उसे अरब में वो कहां है? और उसी कविता में आगे वो लिखते हैं कि भोपाल में बहुत कम बचा है भोपाल। पटना में बहुत कम पटना और लखनऊ में बहुत कम बचा है लखनऊ। पुराने शहर में उस पुराने शहर का कम हो जाना आज की राजनीति की देन है। हमारी फिल्म आज के लखनऊ की कहानी है,जो बहुत कायदे से एक दूसरे के साथ हिलमिल के रह रही है। लेकिन सोशल मीडिया टूल्स और राजनीति की बुरी आंधी, वो कैसे लोगों को हिलाने तोड़ने उसमें दरार डालने में लगी है। लेकिन लोग अपने ही अनुभवों से सीख करके उन सबको हराते हैं। अपने बीच से उन तमाम बुरी आत्माओं को भगाते हैं। फिर से अपने पुरानेपन में लौटते हैं। सवाल- आप दोनों Zen Z हैं। डेली रूटीन में सोशल मीडिया का जो प्रभाव है और खासकर के व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का। इसे कैसे देखते हैं? जवाब/विवान- मेरे हिसाब से सोशल मीडिया एक ऐसी चीज है, जिससे रौनक भी फैलाई जा सकती है। पॉजिटिविटी भी फैलाई जा सकती है। मैं अपनी लाइफ में सोशल मीडिया का उपयोग पॉजिटिव तरीके से करता हूं। कोशिश यही रहती है। मेरी हमेशा से उम्मीद रही है कि हम अपने काम के साथ, इंसानियत के साथ लोगों के बीच खुशियां और एकता फैलाएं। जो ताकत हमें बांटने की कोशिश कर रही हैं, उसे हम किसी तरह से प्यार से हरा पाएं। अवंतिका- आपने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और फेक न्यूज की बात की। मुझे लगता है इससे लड़ने या रोकने के लिए जर्नलिज्म एक महत्वपूर्ण टूल है। पहले मीडिया में कोई भी जानकारी देने से पहले उसका फैक्ट चेक होता था। लेकिन आज के समय में पब्लिश करना ज्यादा जरूरी हो गया है। सही जानकारी देना जरूरी नहीं रहा है। सारे मीडिया संस्थान को इस पर ध्यान देना चाहिए। लोगों को भी कोई जानकारी व्हाट्सएप या किसी एक इंसान से ना लेकर मीडिया से लेनी चाहिए। फेक न्यूज से डील करने का यही सही तरीका होगा। सवाल- विवान आपने और अवंतिका ने लखनऊ की गलियों में शूट किया है। क्या महसूस हुआ? प्रोसेस क्या रहा? जवाब/विवान- जब भी मैं हमारी फिल्म के शूट के बारे में सोचता हूं तो बहुत ही सुंदरता और रंगीन किस्म के ख्याल आते हैं। ये पूरा शूट काफी खुशनुमा था। इतने कमाल के लोग थे और इतनी बढ़िया टीम थी। हम सब बहुत ही अच्छे दोस्त बन गए। एक-दूसरे के साथ काम कर के, वक्त बिता कर सब के सब बहुत ही करीब हो गए। वहां लखनऊ में एक परिवार की तरह बन गए। लखनऊ की हवाओं में रहकर उसे अपना बनाने की कोशिश की। ये शहर मेरे दिल के बहुत ही करीब है। हालांकि, मैं मुंबई में पला बढ़ा हूं लेकिन यूपी तो खून में बसता है। तो उस यूपी को खोजने में भी काफी मजा आया। इस फिल्म को करते समय मैं अपने अंदर का यूपी वाला बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था। सवाल- नसीरुद्दीन सर ने यूपी के बारे में कुछ बताया था या कोई सलाह दी थी? जवाब/विवान- बिल्कुल बताया था। खास करके उनके परिवार के लोग, जो वेस्ट यूपी मेरठ साइड से आते हैं। वहां की भाषा बहुत अलग और दिलचस्प है। इलाहाबाद शुद्ध हिंदी भाषी बेल्ट है और वेस्ट यूपी मेरठ में ज्यादातर उर्दू बोली जाती है। तो भाषाई तौर पर बहुत ही इंटरेस्टिंग एक यूनियन है। जैसे हमारी फिल्म भी जो यू शेप की गली है हनुमान गली और रहमान गली, वो लगभग ईस्ट यूपी और वेस्ट यूपी को रिप्रजेंट करता है। मेरे बाबा के फैमिली मेंबर्स काफी दिलचस्प किस्म के लोग हैं। मैंने उनसे भी काफी सारी चीजें याद रखी और अपने किरदार में इसे अपनाया। जैसे सरधना वालों के बारे में एक चीज बताता हू कि वो हर चीज के बारे में बहुत ओवर रिएक्ट करते हैं। हमने अविनाश सर और पुनर्वसु से भाषा को बारीकी से समझने की कोशिश की। यह अद्भुत भाषा है। इसमें बहुत रस है। अवंतिका- दो जरूरी चीजों की वजह से मेरे लिए ये अनुभव बहुत प्यारा रहा है। हमने लाइव लोकेशन में शूट किया है। आप सोचो कि बाहर से एक टीम आती है, जो आपकी गली,आपके घरों पर एक महीने के लिए कब्जा करती है। हो सकता है बहुत लोगों के लिए प्रॉब्लम वाली बात हो। पर गली के लोगों ने हमें अपना लिया और इतने प्यार से रखा, कभी कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। हमारे साथ घुल-मिल कर रहे, खाना खिलाया। बतौर एक्टर डायलेक्ट को लेकर जो हमारे सवाल थे, उसमें हमारी मदद की। हमें जो लखनवी मेहमाननवाजी मिली वो एक इम्पोर्टेन्ट फैक्टर था। दूसरी चीज खाना थी। खाने का जो हमारा एक्सपीरियंस कमाल रहा। हर दिन कोई एक नई चीज मिलती थी। जैसे पानी के बताशे, प्रकाश की कुल्फी, शर्मा जी की चाय या ढाबे का खाना। मुझे चाट बहुत पसंद है तो मैंने अलग-अलग टाइप के चाट भी खाई। सवाल- इस फिल्म के जरिए अपने फैंस को क्या मैसेज देना चाहेंगे? जवाब/ अविनाश- देखिए मैं हमेशा एक पुराने गीत का जिक्र करता हूं- ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा।’ हमारी फिल्म की कहानी यही है कि नफरत को केवल मोहब्बत मिटा सकती है। 14 मार्च को आप इसी संदेश के साथ फिल्म देखने जाएंगे। इस फिल्म से आपको बहुत कुछ हासिल होगा। अवंतिका- 14 मार्च को आपको ‘इन गलियों में प्यार मिलेगा।’ विवान- ‘इन गलियों में प्यार मिलेगा’, बिरादरी मिलेगी, एकता की समझ मिलेगी और एक ऐसा मोहल्ला मिलेगा, जो शायद हमारे देश का आईना है।

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