Monday, July 21, 2025
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राधिका मर्डर केस, एक्सपर्ट्स ने जांच में झोल बताए:बोले- पुलिस आरोपी के बयान में ही उलझी, कोर्ट में मुकर गया तो क्या करेंगे

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हरियाणा में गुरुग्राम के हाई प्रोफाइल टेनिस प्लेयर राधिका यादव मर्डर केस में आरोपी पिता के स्टेटमेंट पर टिकी पुलिस की थ्योरी पर सवाल खड़े हाे रहे हैं। क्रिमिनल लॉयर, रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों और कानून के जानकारों का मानना है कि पुलिस को बाकी एंगल पर भी काम करना चाहिए। इस केस के बारे में जब दैनिक भास्कर ने लॉ एक्सपर्ट्स से बात की तो कई तथ्य सामने आए। अधिकतर एक्सपर्ट ने सीधे तौर पर पुलिस की इन्वेस्टिगेशन को एकतरफा बताया और कहा कि पुलिस को दिए आरोपी के बयान कोर्ट में ज्यादा मायने नहीं रखते। वह कोर्ट में मुकर गया तो पुलिस क्या करेगी? कोर्ट सबूत और गवाहों के आधार पर डिसीजन लेती हैं। इस तरह के फैमिली मर्डर केस में अगर एक ही थ्योरी पर पुलिस चैप्टर बंद कर देती है तो क्रिमनल को फायदा मिलने की संभावना बढ़ जाती है। राधिका की हत्या ने न केवल सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर हलचल मचाई है, बल्कि कानूनी दृष्टिकोण से भी यह मामला जटिल और विवादास्पद बन सकता है। बता दें कि 10 जुलाई को गुरुग्राम में टेनिस प्लेयर राधिका यादव की उसके पिता दीपक यादव ने 4 गोलियां मारकर हत्या कर दी। पिता ने पुलिस को बताया कि वह बेटी की कमाई खाने के लोगों के तानों से परेशान था। बेटी ने उसकी बात नहीं मानी, इसलिए उसकी हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपी के इसी बयान के बाद अपनी कार्रवाई को सीमित कर रखा है। पुलिस की जांच पर कानून के जानकारों ने क्या-क्या सवाल उठाए… सीनियर एडवोकेट बोले- आरोपी के बयान को आधार बनाना खतरनाक
इस मामले पर पुलिस की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अजय पाल का कहना है कि किसी भी मर्डर केस की जांच में आरोपी के बयान को प्राथमिक आधार बनाना खतरनाक है। इस मामले में गहन और वैज्ञानिक जांच की जरूरत है, जिसमें फोरेंसिक सबूत, गवाहों के बयान और डिजिटल सबूतों का विश्लेषण शामिल हो। केवल आरोपी के बयान पर निर्भर रहना कानूनी प्रक्रिया की गंभीर चूक है। उन्होंने कहा कि गुरुग्राम के एक स्कूल के स्टूडेंट्स मर्डर केस में ऐसा हो चुका है, जब पुलिस ने एक ही थ्योरी पर काम करते हुए गलत व्यक्ति को पकड़ लिया था। अगर पुलिस की जांच में खामियां रहती हैं, तो यह बचाव पक्ष के लिए मजबूत आधार हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर क्राइम सीन से सबूत ठीक से एकत्र नहीं किए गए या चेन ऑफ कस्टडी में गड़बड़ी हुई, तो यह कोर्ट में साक्ष्यों की स्वीकार्यता को प्रभावित कर सकता है। अजय पाल ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 24 इस मामले के बीच में आएगी। अगर अभियुक्त कहता है कि उसने हत्या नहीं की और ऐसा कोई बयान नहीं दिया, तो उसे फायदा पहुंच सकता है। यानी यह घोड़े के आगे गाड़ी जोड़ने जैसा है, न कि घोड़े के पीछे गाड़ी जोड़ने जैसा। यह बेहद मुश्किल है कि एक प्रगतिशील और आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति ने लोगों के ताने सुनकर अपनी बेटी को मार दिया हो। हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ने कहा- मुझे जांच की निष्पक्षता पर संदेह
वहीं, हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट अजय चौधरी कहते हैं- राधिका मर्डर केस में पुलिस की प्रक्रिया और जांच की निष्पक्षता पर मुझे संदेह है। पुलिस अपनी प्रारंभिक जांच को ही अंतिम मान रही है। आरोपी दीपक यादव ने जो दावा किया कि वह गांववालों के तानों से तंग आ चुके थे। यह बात किसी के भी गले नहीं उतर रही। अजय चौधरी ने कहा- पुलिस ने काफी लोगों से पूछताछ की है, लेकिन जांच का दायरा मुख्य रूप से दीपक के बयान तक सीमित रहा है। क्या यह हत्या पारिवारिक विवाद, आर्थिक लेन-देन या किसी अन्य गहरे कारण से हुई? पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी संभावना छूटे नहीं। रिटायर इंस्पेक्टर ने मृतका के दोस्तों और करीबियों से बात करने पर जोर दिया
राष्ट्रपति से अवॉर्ड पा चुके एक रिटायर्ड इंस्पेक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि राधिका मर्डर केस में जब पुलिस के पास आरोपी, हथियार और वजह आ जाती है और केस फैमिली के अंदर का है तो अमूमन पुलिस अपनी जांच का दायरा सीमित कर देती है। हालांकि, पुलिस के पास राधिका के मोबाइल, सोशल मीडिया अकाउंट्स और उनके निजी संबंधों की जांच का ऑप्शन है। क्योंकि यह संभव है कि कुछ डिजिटल सबूत मिटाए गए हों। उन्होंने कहा- क्या पुलिस ने क्राइम सीन को ठीक से सुरक्षित किया? क्या फोरेंसिक साक्ष्यों का सही विश्लेषण किया गया? इन सवालों के जवाब जरूरी हैं। अगर क्राइम सीन को तुरंत सुरक्षित नहीं किया गया, तो महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो सकते हैं। मां के बयान, राधिका की बेस्ट फ्रेंड का दावा करने वाली लड़की, राधिका और दीपक के संपर्क में रहने व्यक्ति, आदि से पुलिस को बात करनी चाहिए। क्रिमिनल लॉयर बोले- इकबालिया बयान आरोप साबित नहीं करता
केस को शुरू से फॉलो कर रहे गुरुग्राम के सीनियर क्रिमिनल लॉयर मनीष शांडिल्य का कहना है- मैं पहले दिन से इस मामले को देख रहा हूं। चार्जशीट दाखिल होने तक पुलिस हर एंगल से जांच कर सकती है और करनी भी चाहिए। क्योंकि यह पुलिस का अधिकार क्षेत्र है। इकबालिया बयान किसी भी आरोप को साबित नहीं करता। जांच एजेंसी हर दृष्टिकोण से जांच कर सकती है, ताकि अदालत में जुर्म साबित करने में कोई संदेह न रह जाए। उन्होंने कहा कि इस मामले में कोई चश्मदीद गवाह सामने नहीं आया है, जिसने आरोपी को गोली चलाते हुए देखा हो। जांच एजेंसी को इस केस को कड़ी से कड़ी जोड़कर अदालत में साबित करना होगा, जिसमें गन और बुलेट की रिकवरी, फिंगर प्रिंट्स, एफएसएल रिपोर्ट, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट अहम पहलू होंगे। इसके अलावा सीसीटीवी फुटेज और मृतक के मोबाइल भी खंगाले जाने चाहिए। कड़ी जोड़ना इसलिए भी जरूरी है कि कहीं इसमें किसी और की कोई भूमिका तो नहीं है। मनीष शांडिल्य ने कहा कि राधिका की मां मंजू यादव की चुप्पी को कोर्ट में उनके खिलाफ नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह उनका संवैधानिक अधिकार है। लेकिन, यह जांच को और जटिल बनाता है, क्योंकि वह एक महत्वपूर्ण गवाह हो सकती हैं। दीपक यादव के दोस्त ने कहा- ताने सुनकर कोई गोली नहीं मार सकता
सेक्टर 57 रेजिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) के प्रेजिडेंट और दीपक यादव के दोस्त पवन यादव का कहना है कि वह दीपक को काफी समय से जानते हैं, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि हत्या की जो वजह दीपक ने पुलिस को बताई है, वह सच है। उन्होंने कहा- जो व्यक्ति अपनी बेटी से इतना प्यार करता हो और अपना सारा जीवन उसी के करियर के लिए लगा दे, वह केवल ताने सुनकर बेटी को 4 गोलियां नहीं मार सकता। अब जानिए, मामले में पुलिस ने क्या किया… आरोपी पिता ताने वाले बयान पर कायम
पुलिस के मुताबिक, राधिका की हत्या को लेकर इंस्टाग्राम रील से लेकर उसके वीडियो सॉन्ग जैसी कई थ्योरी भले ही चल रही हों, लेकिन पुलिस आरोपी पिता दीपक बेटी की कमाई खाने के ताने और टेनिस की ट्रेनिंग बंद न किए जाने से नाराजगी के बयान पर कायम है। पिता ने पुलिस को कहा कि वह पिछले 15 दिन से काफी परेशान था। कहीं भी जाते हुए उसे लगता था कि अगर 2 आदमी भी बात करते दिखते हैं, तो वे उसके बारे में ही बात कर रहे हैं। इसी वजह से परेशान होकर उसने यह कदम उठाया। राधिका ने गांव वालों की बातों को नजरअंदाज करने के लिए कहा था, लेकिन यह बात वह समझ नहीं पाया। पुलिस प्रवक्ता का दावा- जांच सही दिशा में हुई
इस मामले में पुलिस प्रवक्ता संदीप कुमार का कहना है कि पुलिस अपनी जांच को लेकर संतुष्ट है। रिमांड के दौरान एसएचओ और जांच से जुड़े अधिकारियों ने हर तरीके से पूछताछ कर ली। आरोपी अपने बयान पर है। इसलिए दूसरे एंगल पर जांच करने का मतलब नहीं बनता। हां, अगर कोई शिकायत आती है या फिर कुछ नया तथ्य सामने आता है तो पुलिस जांच करेगी। फिलहाल, राधिका और आरोपी दीपक का मोबाइल जांच के लिए भेजा गया है। पुलिस ने मौजिज लोगों से पूछा- किसने ताने मारे
इस मामले में छानबीन के दौरान पुलिस ने प्रमुख लोगों को थाने में बुलाया। उनसे तानों के बारे में पूछा गया तो सभी ने कहा कि दीपक को किसी ने ताना नहीं मारा। वह आर्थिक रूप से संपन्न है, जिसकी मासिक आय 15-17 लाख रुपए थी। पुलिस निष्पक्ष जांच करे, क्योंकि उन्हें लगता है कि दीपक कुछ छिपा रहा है। इस पर थाना प्रभारी विनोद ने कहा कि गांव वाले चाहें तो ताना मारने वाले व्यक्ति का नाम बता सकते हैं, या फिर किसी तरह की कोई कंप्लेंट दे सकते हैं। जब राधिका के पिता प्रारंभिक जांच में ही अपना जुर्म कबूल कर चुके हैं, तो किसी और एंगल पर जांच भटकाना सही नहीं है। इलाज पर 30 लाख रुपए खर्च किए
पूछताछ में यह भी बात सामने आई है कि पिछले साल राधिका के कंधे पर चोट लग गई थी। पेशेवर रूप से खेलने में असमर्थ होने के बाद राधिका ने युवा खिलाड़ियों को कोचिंग देनी शुरू कर दी। तब दीपक ने उसके इलाज पर 30 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए, लेकिन वह फिर भी वापसी नहीं कर सकी। मां बोली- मुझे हत्या की वजह नहीं पता
पिता के ताने के दावे के बावजूद मां मंजू यादव ने पुलिस को कहा कि उसे नहीं पता कि पति ने बेटी की गोलियां मारकर हत्या क्यों की। मां ने यह भी कहा कि उनकी बेटी का चरित्र बिल्कुल ठीक था। पति को बेटी से क्या नाराजगी थी, इसके बारे में भी उन्हें कुछ नहीं पता। जिस वक्त गोलियां मारी गईं, वह तबीयत खराब होने की वजह से वह अलग कमरे में लेटी हुई थीं। पुलिस भी मौके के हालात और अब तक की जांच के बाद मां को आरोपों के दायरे से बाहर रख रही है।

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