Thursday, March 13, 2025
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मूवी रिव्यू- सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव:दोस्ती, जज्बे-जुनून की कहानी; एक्टिंग, डायरेक्शन और राइटिंग सटीक;  जुलाहे, हिंदू-मुस्लिम और हिंसा से इतर मालेगांव की अलग दुनिया

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डायरेक्टर रीमा कागती की फिल्म ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ थिएटर में 28 फरवरी को रिलीज हो रही है। यह एक ऐसी प्रेरणादायक फिल्म है जो नासिर शेख की जिंदगी पर आधारित है। नासिर शेख एक जज्बाती, मेहनती और साहसी व्यक्ति हैं, जिन्होंने मालेगांव के लोगों के लिए सिनेमा को एक नई उम्मीद और मुस्कान का जरिया बना दिया। यह फिल्म न केवल फिल्ममेकिंग की चुनौतीपूर्ण राह पर चलने वाले हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, बल्कि उन सपनों को भी सलाम करती है जिनमें संसाधनों की कमी के बावजूद जुनून की कोई सीमा नहीं होती। इस फिल्म को रीमा कागती, जोया अख्तर, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने प्रोड्यूस किया है। इस फिल्म में आदर्श गौरव, विनीत कुमार सिंह, शशांक अरोड़ा, अनुज सिंह दुहान, साकिब अयूब, पल्लव सिंह और मंजरी जैसे उम्दा कलाकारों की अहम भूमिका है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 7 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 4 स्टार रेटिंग दी है। फिल्म की स्टोरी क्या है? फिल्म की कहानी मालेगांव की आम जिंदगी में छुपी कहानियों को उजागर करती है। नासिर (आदर्श गौरव) अपने भाई के लोकल वीडियो पार्लर से जुड़ी दुनिया में रच-बस गया है। शादियों में वीडियो रिकॉर्डिंग से लेकर एडिटिंग सीखने तक, नासिर ने कम संसाधनों में भी ऐसी फिल्में बना दीं जो मालेगांव के दिलों को छू गईं। अपने दोस्त फरोग जाफरी (विनीत कुमार सिंह), अकराम (अनुज दुहान), अलीम (पल्लव सिंह), शफीक (शशांक अरोड़ा) और इरफान (साकिब अय्यूब) की मदद से नासिर ने बॉलीवुड की हिट फिल्म ‘शोले’ का स्पूफ’, ‘मालेगांव की शोले’ बनाया, लेकिन जैसे ही सफलता की राह पर कदम बढ़ते हैं, दोस्तों के बीच मतभेद और व्यक्तिगत संघर्ष उभर आते हैं। जब शफीक को लंग कैंसर की खबर मिलती है, तो नासिर अपने दोस्तों के साथ मिलकर शफीक को हीरो बनाते हुए ‘सुपरमैन ऑफ मालेगांव’ बनाने की ठान लेता है। इस फिल्म में एक भावुक मोड़ जहां दोस्ती, जुनून और जीवन की जंग एक साथ झलकती है। स्टार कास्ट की एक्टिंग कैसी है? फिल्म की सबसे खूबसूरत बात इसकी असली और बेहतरीन कास्टिंग है। नासिर का किरदार निभाने वाले आदर्श गौरव ने गहराई से उस जज्बे को दर्शाया है जो हर संघर्षरत कलाकार के अंदर होता है। फरोग के किरदार में विनीत कुमार सिंह ने दर्द, सच्चाई और लेखक की गंभीरता को इस कदर उकेरा है कि जब आप असली फरोग के वीडियो देखें, तो लगे कि उनकी ही शख्सियत पर विनीत ने जादू कर डाला है। शफीक का किरदार शशांक अरोड़ा की दमदार अदाकारी से दर्शकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ जाता है। बाकी कलाकार भी अपनी-अपनी भूमिकाओं में इतनी प्रामाणिकता और मेहनत लाते हैं कि फिल्म के हर पल में जीवन की झलक महसूस होती है। फिल्म का डायरेक्शन कैसा है? डायरेक्टर रीमा कागती ने कहानी के हर पहलू पर न्याय करते हुए कलाकारों से शानदार प्रदर्शन निकलवाया है। वरुण ग्रोवर की कलम से निकली कहानी ने फिल्म को एक नई दिशा और भावनात्मक गहराई प्रदान की है। उनकी लिखावट में न केवल प्रेरणा की कहानी है, बल्कि हर उस व्यक्ति के संघर्ष को भी सलाम है जो असंभव को संभव में बदलने का सपना देखता है। ‘राइटर ही बाप होता है’ जैसे संवाद दर्शकों के दिलों में गूंजते हैं। तकनीकी दृष्टिकोण से भी फिल्म अच्छी बनी है। फिल्म के डीओपी स्वप्निल एस सोनावणे की सिनेमैटोग्राफी और प्रोडक्शन डिजाइनर सैली व्हाइट की कलात्मक सोच ने मालेगांव की बारीकियों को पर्दे पर बखूबी उतारा है। साथ ही, कॉस्ट्यूम और हेयर डिजाइन भी दर्शकों की नजरों से नहीं बच पाते। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? सचिन जिगर का संगीत फिल्म के थीम के अनुरूप बेहतरीन है। बैकग्राउंड म्यूजिक ने हर भाव को गहराई से उकेरा है, जबकि जावेद अख्तर का लिखित ‘बंदे’ गाना दर्शकों में नई ऊर्जा का संचार करता है। फिल्म का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं अगर आप एक ऐसी फिल्म की तलाश में हैं जो जिंदगी के संघर्ष, दोस्ती और जुनून को बिना किसी आड़-छाड़ के पेश करे, तो ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ आपके लिए है। दमदार अभिनय, सटीक निर्देशन, बेहतरीन लिखाई और तकनीकी उत्कृष्टता के साथ यह फिल्म आपको उन सपनों की ओर प्रेरित करेगी जो दूसरों के लिए असंभव माने जाते हैं। मालेगांव की असली कहानियों में डूब जाने के लिए और अपने अंदर छुपी उम्मीदों को जगाने के लिए यह फिल्म जरूर देखें।

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