Friday, July 18, 2025
Latest:
Entertainment

मूवी रिव्यू- मां:एक मां की ममता और महाकाली की महिमा का खौफनाक संगम, काजोल की दमदार एक्टिंग और कथानक फिल्म को खास बनाती है

Share News

एक्ट्रेस काजोल की माइथोलॉजिकल हॉरर फिल्म ‘मां’ सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। विशाल फुरिया के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में काजोल के अलावा रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता और खेरिन शर्मा की अहम भूमिका है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 15 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार की रेटिंग दी है। फिल्म की कहानी क्या है? फिल्म की कहानी एक मां की ममता से शुरू होकर देवी काली की शक्ति पर खत्म होती है। ये कहानी है अंबी (काजोल) की, जो अपने पति शुभंकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) और बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) के साथ कोलकाता में रहती है। शुभंकर को अपने पुश्तैनी गांव चंद्रपुर जाना पड़ता है, जहां उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। वह अपनी हवेली ‘राजबाड़ी’ को बेचने का फैसला करता है, लेकिन रास्ते में उसकी रहस्यमयी मौत हो जाती है। अब अंबी को अपनी बेटी श्वेता के साथ उसी गांव आना पड़ता है, जहां हर कोने में डर, रहस्य और एक पुराना दैत्य छिपा बैठा है। क्या अंबी अपनी बेटी को बचा पाएगी? क्या वो खुद में छिपी देवी शक्ति को पहचान पाएगी? फिल्म की जड़ें आदिपुराण की रक्तबीज वध कथा में हैं, जहां एक मां अंत में काली का रूप धारण कर दैत्य का अंत करती है। स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है? काजोल ने अब तक के अपने करियर का सबसे साहसी और गंभीर अभिनय किया है। एक मां के डर, गुस्से, दुख और साहस को उन्होंने संपूर्णता के साथ निभाया है। उनकी आंखों में डर भी है और देवी शक्ति की चमक भी। खेरिन शर्मा ने छोटी उम्र में बहुत ही सधा हुआ अभिनय किया है, वहीं रोनित रॉय सरपंच जॉयदेव के रूप में रहस्य और संदेह का चेहरा बनते हैं। इंद्रनील सेनगुप्ता छोटी भूमिका में भी असर छोड़ते हैं। सह कलाकारों का अभिनय भी फिल्म को ठोस बनाता है। फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है? विशाल फुरिया का निर्देशन मौलिक और भावनात्मक दोनों है। उन्होंने डर को चीखों से नहीं, सन्नाटों और प्रतीकों से रचा है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अद्भुत है। धुंध से ढके गांव, जली हुई दीवारें, पुरानी हवेली और जंगल, सब कुछ मिलकर माहौल बनाते हैं। वीएफएक्स और प्रोडक्शन डिजाइन दमदार हैं, लेकिन ओवर नहीं लगते। फिल्म कुछ हिस्सों में अनुमानित लगती है, लेकिन फिर भी दर्शकों को पकड़ कर रखती है। खासतौर पर आखिरी 30 मिनट देवी काली की कथा के आधुनिक रूप की तरह भावनात्मक और भीषण सामने आते हैं। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? फिल्म का ‘हमनवा’ गीत मधुर है और भावनात्मक जुड़ाव देता है। लेकिन फिल्म की जान ‘काली शक्तिपात’ गीत है, जो एक पूजा नहीं, अनुभव है। बैकग्राउंड स्कोर शानदार है, जो कुछ जगह डराता है, तो कुछ जगह रौंगटे खड़े कर देता है। डर को सिर्फ दिखाया नहीं, बल्कि महसूस कराया गया है। फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं? यह सिर्फ एक हॉरर फिल्म नहीं है, बल्कि मां की ममता और शक्ति का रूपांतरण है। इसमें पौराणिकता है, भावना है और आधुनिक भय का एक नया चेहरा है। काजोल का दमदार अभिनय और विशाल फुरिया का कथानक इस फिल्म को खास बनाता है। यह डर की बजाय श्रद्धा और साहस से डर को हराने की कहानी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *