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मूवी रिव्यू- द डिप्लोमैट:भारतीय कूटनीति, इंसानियत और एक साहसी मिशन की रोमांचक दास्तान, जॉन अब्राहम का अब तक का सबसे अलग और गंभीर किरदार

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जॉन अब्राहम की फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ 14 मार्च 2025 को थिएटर में रिलीज होगी। शिवम नायर के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में जॉन अब्राहम के साथ सादिया खतीब, जगजीत संधू, कुमुद मिश्रा और शारिब हाशमी की अहम भूमिका है। ‘द डिप्लोमैट’ की कहानी ना सिर्फ एक भारतीय महिला के संघर्ष की मिसाल है, बल्कि यह भी साबित करती है कि जब भारत की संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा की बात आती है, तो देश के राजनयिक अपनी जान जोखिम में डालकर भी उनकी रक्षा के लिए तैयार रहते हैं। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है। फिल्म की कहानी क्या है? यह फिल्म असली घटनाओं पर आधारित है और भारतीय राजनयिक जे.पी. सिंह (जॉन अब्राहम) की कहानी दिखाती है। उनकी जिंदगी तब बदल जाती है जब उज्मा अहमद (सादिया खतीब) नाम की भारतीय महिला इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में मदद मांगती है। उज्मा का दावा है कि उसे पाकिस्तानी नागरिक ताहिर अली (जगजीत संधू) ने अगवा कर जबरन शादी की है। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में जे.पी. सिंह को कानून, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और दोनों देशों की सरकारों के दबाव के बीच संतुलन बनाकर उज्मा को सुरक्षित भारत लाने की जिम्मेदारी निभानी है। स्टार कास्ट की एक्टिंग कैसी है? जॉन अब्राहम ने ना सिर्फ जे.पी. सिंह के किरदार को पूरी संजीदगी से निभाया है, बल्कि इस फिल्म को भूषण कुमार के साथ प्रोड्यूस भी किया है। यह उनकी एक अलग और प्रभावशाली फिल्म है, जिसमें उन्होंने बिना एक्शन और भारी-भरकम डायलॉग्स के, सिर्फ एक्सप्रेशन्स और बॉडी लैंग्वेज से दमदार प्रभाव छोड़ा है। उज्मा अहमद के रूप में सादिया खतीब ने अपने किरदार के दर्द, बेबसी और लाचारी को बेहद वास्तविकता के साथ पेश किया है, जो दर्शकों को झकझोर कर रख देता है। विलेन ताहिर अली के रूप में जगजीत संधू ने दमदार काम किया है। इससे पहले पाताल लोक में अपने शानदार अभिनय से पहचान बना चुके जगजीत ने यहां भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। उनकी आंखों में खौफनाक इरादों की झलक और डायलॉग डिलीवरी से किरदार का प्रभाव और भी बढ़ जाता है। शारिब हाशमी और कुमुद मिश्रा ने अपनी हाजिरजवाबी और हल्के-फुल्के अंदाज से फिल्म के गंभीर माहौल को बैलेंस किया है, जिसमें जॉन अब्राहम ने भी उनका अच्छा साथ दिया है। सुषमा स्वराज के किरदार में रेवती ने अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी है। डायरेक्शन कैसा है? डायरेक्टर शिवम नायर ने इस फिल्म से पहले शबाना और स्पेशल ऑप्स जैसी थ्रिलर प्रोजेक्ट्स का निर्देशन किया है। उन्होंने यहां भी जबरदस्त काम किया है। फिल्म की टेंशन पहले ही सीन से महसूस होती है और दर्शकों को आखिर तक सीट से हिलने नहीं देती। रितेश शाह की कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स फिल्म को मजबूती देते हैं। कैमरा वर्क और क्लोजअप शॉट्स खास तौर पर असरदार हैं, जो दर्शकों को कहानी से बांधे रखते हैं। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? फिल्म में कोई गाना नहीं है, जो इसकी कहानी के हिसाब से सही फैसला लगता है। बैकग्राउंड म्यूजिक माहौल को थ्रिलिंग और इंटेंस बनाए रखता है। कुछ दृश्यों में साउंड का इस्तेमाल जबरदस्त तरीके से किया गया है, जो इमोशनल और रोमांचक दोनों तरह का असर डालता है। फिल्म का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं 25 मई 2017 को उजमा वाघा बॉर्डर से भारत लौटीं, जहां सुषमा स्वराज ने उन्हें ‘भारत की बेटी’ कहकर स्वागत किया और उनकी बहादुरी की सराहना की। फिल्म में अंत में यह सीन देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस रोमांचक और भावनात्मक सच्ची घटना को अब बड़े पर्दे पर बहुत ही खूबसूरती से पेश किया गया है। बिना मसाला डाले फिल्म को रोचक बनाने की शानदार कोशिश की गई है। यह फिल्म एक बार देखने लायक जरूर है।

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