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दादा अंग्रेजों संग क्रिकेट खेले,पोता RR को दे रहा ट्रेनिंग:कहा- मां डॉक्टर बनना चाहती थी; पिता का सपना पूरा करने के लिए बना क्रिकेटर

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बांसवाड़ा के दिशांत याग्निक राजस्थान रॉयल्स में बतौर फिल्डिंग कोच अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जो राजस्थान में डिस्ट्रिक्ट लेवल से रणजी टीम और राजस्थान रॉयल्स टीम का हिस्सा रह चुके हैं। राजस्थान टीम तक का सफर तय करना दिशांत याग्निक के लिए इतना आसान नहीं था। मां उन्हें इंजीनियर या डॉक्टर बनना चाहती थी। पिता बतौर क्रिकेटर आगे बढ़ना चाहते थे। तब वे जिद कर जयपुर शिफ्ट हो गया। पहली बार सी डिवीजन क्रिकेट टूर्नामेंट में जयपुर में 500 से ज्यादा रन बनाए। पढ़िए दिशांत की दैनिक भास्कर से एक्सक्लूसिव बातचीत… सवाल – बतौर क्रिकेटर आपके करियर की शुरुआत कब और कैसे हुई?
जवाब – मेरे दादा गोविंद लाल याग्निक ने सबसे पहले हमारे परिवार में क्रिकेट खेलना शुरू किया था। वह साल 1930 में अंग्रेजों के लिए काम करते थे। तब वह अंग्रेजों के साथ क्रिकेट खेलते थे। उनके बाद मेरे पिता हरेंद्र याग्निक ने भी कॉलेज और यूनिवर्सिटी लेवल पर क्रिकेट खेला है। उन दोनों को देखकर ही मेरी क्रिकेट जर्नी की शुरुआत हुई है। इसके बाद मैंने साढ़े सात साल की उम्र में ही बांसवाड़ा में क्रिकेट कोचिंग लेना शुरू कर दिया। इसके बाद धीरे-धीरे अंडर-14 और अंडर – 16 जैसे टूर्नामेंट में मैंने बांसवाड़ा का प्रतिनिधित्व किया। उस वक्त मां मुझे इंजीनियर या डॉक्टर बनना चाहती थी। पिता मुझे बतौर क्रिकेटर आगे बढ़ना चाहते थे। तब मैं जिद कर जयपुर शिफ्ट हो गया। तब मैंने पहली बार सी डिवीजन क्रिकेट टूर्नामेंट में जयपुर में 500 से ज्यादा रन बनाए। उसके बाद में अंडर-16 राजस्थान टीम में शामिल हुआ। फिर मुझे अंडर-19 राजस्थान टीम का कप्तान बनने का मौका मिला। साल 2004 में 19 साल की उम्र में मुझे राजस्थान रणजी टीम में खेलने का मौका दिया गया। इसमें मैंने बतौर बल्लेबाज और विकेटकीपर अच्छी परफॉर्मेंस दी। साल 2006 में देवधर ट्रॉफी में आखिरी ओवर में 14 रन चाहिए थे। उस वक्त मैंने लास्ट बॉल पर छक्का मारकर हमारी टीम को जीत दिलाई थी। जो एक अनोखा रिकॉर्ड है। इसे आज भी सब याद करते हैं। सवाल – राजस्थान रॉयल्स टीम में सिलेक्शन कैसे हुआ?
जवाब – पहले इंडियन प्रीमियर लीग में डोमेस्टिक लेवल के प्लेयर का ऑप्शन नहीं होता था। जब आईपीएल की शुरुआत हुई, तब मैं सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में खेल रहा था। इसमें मेरी परफॉर्मेंस काफी शानदार थी। उस वक्त मुझे मुंबई इंडियंस, डेक्कन चार्जर्स और राजस्थान रॉयल्स तीन टीम में शामिल होने का मौका था। उस वक्त मेरे पिता के सुझाव पर मैंने राजस्थान रॉयल्स का हिस्सा बनने का फैसला किया। तब से आज तक राजस्थान रॉयल्स मेरे लिए एक परिवार की तरह है। सवाल – शेन वार्न, राहुल द्रविड़ और कुमार संगकारा तीनों के साथ आपने ड्रेसिंग रूम शेयर किया है, इन तीनों में सबसे ज्यादा अलग और दिलचस्प क्या है? जवाब – शेन वार्न, राहुल द्रविड़ और कुमार संगकारा तीनों क्रिकेट की सबसे ज्यादा नॉलेज रखने वाले खिलाड़ी है। जिन्हें हर सिचुएशन को डील करना आता है। प्री-गेम से लेकर पोस्ट गेम तक इन तीनों का खेल को हैंडल करने का जो तरीका है, वह काफी मिलता-जुलता है। साल 2011 में जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में मुंबई इंडियंस के साथ राजस्थान रॉयल्स का मैच चल रहा था। सचिन तेंदुलकर और डेविन स्मिथ बैटिंग कर रहे थे। तब शॉन टेट बॉलिंग करने जा ही रहे थे। तभी अचानक शेन वार्न ने अशोक मेनारिया को बॉलिंग करने के लिए कहा। मैंने विकेट कीपिंग करते हुए पहली ही गेंद पर सचिन तेंदुलकर को स्टंप आउट कर दिया था। यह सब इतना अचानक हुआ, जो किसी के लिए भी काफी नया था। शेन वॉर्न इन सब चीजों को बहुत पहले ही भांप गए थे। मुझे लगता था कि उनका सिक्स सेंस बहुत बेहतर काम करता है। इसी तरह मुझे राहुल द्रविड़ के नेतृत्व में भी खेलने का मौका मिला। उनकी सोच पूरी तरह से क्रिस्टल क्लियर है। वह अपने साथी खिलाड़ियों पर पूरा विश्वास जताते हैं। इससे वह और ज्यादा बेहतर परफॉर्मेंस दे पाते हैं। कुमार संगकारा का नेचर काफी अलग है, वह जिसके साथ रहते या बात करते हैं। उसी की तरह उनका नेचर हो जाता है। अगर वह युजवेंद्र चहल के साथ बात कर रहे हैं। युजवेंद्र को ऐसा लगेगा कि मैं खुद से ही बात कर रहा हूं। इस तरह की क्वालिटी बहुत कम लोगों में होती है। सवाल – संजू सैमसन के साथ टीम प्लेयर से लेकर बतौर कोच ड्रेसिंग रूम शेयर करना कैसा एक्सपीरियंस है?
जवाब – संजू सैमसन मेरे छोटे भाई की तरह है। वह पूरी तरह से फियरलेस है। अगर फियरलेस वर्ल्ड को डिफाइन करना है तो संजू सैमसंग का नाम जरूर आएगा। साल 2012 में जब मैं इंजर्ड हुआ था। तब मैंने अपने ग्लव्स संजू को सौंपते हुए कहा था कि मैं तुझे अपने ग्लव्स नहीं बल्कि, राजस्थान रॉयल्स के कीपर की पोस्ट को हैंडओवर कर रहा हूं। तुझे इंडिया को रिप्रजेंट करना है। शायद उस वक्त मेरे मुंह पर सरस्वती बैठी और आज संजू न सिर्फ केरल और राजस्थान बल्कि, हर भारतीय का पसंदीदा प्लेयर बन गया है। उसने अपनी नेचर में बहुत बदलाव किए हैं। शुरुआत में जब वह आया था। काफी इंट्रोवर्ट था। अब वह पूरी तरह से बदल गया है। हमारी टीम में काफी बड़े खिलाड़ी थे। बोल्ट, बटलर, अश्विन और कोच कुमार संगकारा जैसे थे। संजू ने सबको बहुत अच्छे से मैनेज किया। सवाल – बतौर खिलाड़ी से कोच तक की जर्नी कैसी रही?
जवाब – प्लेयर से कोच बनने तक का सफर काफी रोचक है। मैंने अपने करियर में काफी खिलाड़ियों की हेल्प की है। राजस्थान के जितने भी रणजी प्लेयर हैं। ऑफ सीजन में वह लोग अक्सर मेरे पास उदयपुर आते थे। अपने टेक्निकल पार्ट को सुधारने के लिए मुझ से सजेशन लेते थे। मुझे बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग के टेक्निकल पार्ट में घुसना बहुत पसंद था। इसका फायदा मुझे अब मिल रहा है। राजस्थान टीम में खेलते हुए जब हमने रणजी ट्रॉफी जीती थी। तभी मैंने फैसला किया था, मैं एक ऐसा कोच बनूंगा। जो टेक्निकल बहुत ज्यादा नॉलेज रखता होगा। जो किसी खिलाड़ी को देख उसकी समस्या को पहचान सके और उसका सही समाधान कर सके। लॉकडाउन के वक्त मैंने संजू सैमसन के साथ भी काफी काम किया। उनकी कीपिंग में काफी प्रॉब्लम थी। इसमें उन्होंने काफी जल्द बहुत ज्यादा सुधार किया है। सवाल – राजस्थान रॉयल्स ने हाई परफाॅर्मेंस सेंटर में काफी इन्वेस्ट किया है, आखिर यह इतना जरूरी क्यों? जवाब – मैं प्रैक्टिस सेशन का बहुत बड़ा समर्थक हूं। वैसे विज्ञान भी कहता है कि अगर किसी काम को दस हजार बार किया जाए तो आपके काम में एक्सीलेंस आ जाती है। इसीलिए राजस्थान रॉयल्स ने हाई परफाॅर्मेंस केंद्र बनाया है। इसकी अब दुनियाभर में बात हो रही है। राजस्थान रॉयल्स टीम के संजू सैमसन, यशस्वी जायसवाल, रियान पराग, देवदत्त पडिक्कल जैसे खिलाड़ियों ने बहुत ज्यादा केंद्र में प्रैक्टिस की है। उसी का नतीजा है कि आज यह सभी खिलाड़ी अपनी परफॉर्मेंस को पहले से काफी ज्यादा बेहतर कर पाए हैं। क्योंकि वहां हर तरह के पिच पर, हर तरह के बॉलर, बैट्समैन और खिलाड़ियों की मदद से एक प्लेयर को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग मिलती है। राजस्थान रॉयल्स के हाई परफाॅर्मेंस सेंटर में खेल कर ही आज काफी प्लेयर्स इंडिया टीम में जगह बनाने में कामयाब हुए हैं। यशस्वी जायसवाल, रियान पराग और ध्रुव जैसे 22 – 23 साल के खिलाड़ी इसका उदाहरण है। हमारे सेंटर में सिर्फ राजस्थान रॉयल्स में टी – 20 मैच खेलने के लिए ही नहीं बल्कि, उन्हें टीम इंडिया के हर फॉर्मेट में खेलने के लिए बेहतर ट्रेनिंग दी जाती है। इसलिए अगर किसी भी खिलाड़ी को लगता है कि उसे टीम इंडिया में जाना है। तो वह हाई परफॉर्मेंस सेंटर में आकर अपनी स्किल में और ज्यादा सुधार कर सकता है। सवाल – बांसवाड़ा से निकल अब साउथ अफ्रीका के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं, यह कैसा एक्सपीरियंस है?
जवाब – आज में शायद सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक रेलवे में कहीं नौकरी कर रहा होता, लेकिन जुबिन बरूचा का मेरी जिंदगी में बहुत बड़ा रोल है। मुझे लगता है की लाइफ में डेस्टिनेशन पर पहुंचना ही इंपोर्टेंट नहीं है। बल्कि, आप किस रास्ते और किन लोगों के साथ चल रहे हैं। वह सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है। राहुल द्रविड़, संजू सैमसन, जुबिन बरूचा, मेरी होम एसोसिएशन सब मुझे यहां तक पहुंचाने में बहुत ज्यादा जरूरी है।

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