चीन-ताइवान के बीच से पहली बार गुजरा जापानी युद्धपोत:ड्रैगन के दावे वाले इलाके में 10 घंटे रहा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के जहाज भी मौजूद थे
जापान का युद्धपोत बुधवार को पहली बार ताइवान और चीन के बीच ताइवान स्ट्रेट से होकर निकला। ईस्ट चाइना सी से पश्चिम की तरफ जा रहे जापानी वॉरशिप ने 10 घंटे में 180 किमी का रास्ता तय किया। BBC ने जापान के मीडिया के हवाले से इसकी जानकारी दी। JS साजनामी नाम के इस युद्धपोत के साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के वॉरशिप भी मौजूद थे। तीनों देशों के नौसैनिक जहाज साउथ चाइना सी में युद्धाभ्यास के लिए जा रहे थे। दरअसल, ताइवान और ताइवान स्ट्रेट दोनों को ही चीन अपना हिस्सा बताता है। ऐसे में ड्रैगन को नाराज न करने के लिए जापान अब तक अपने जहाजों को दोनों देशों के बीच से नहीं निकालता था। चीन के स्टेट मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने बताया कि जब दूसरे देशों के जहाज ताइवान स्ट्रेट से गुजर रहे थे, तब चीनी मिलिट्री पूरे समय इस पर नजर बनाए हुई थी। जापान के चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी ने गुरुवार को कहा, “चीनी सेना की तरफ से बार-बार जापान के हवाई क्षेत्र के उल्लंघन के बाद देश में संकट का माहौल बन गया है।” मैप में देखिए ताइवान स्ट्रेट की लोकेशन… चीन ने जापानी एयरस्पेस में भेजा था अपना जासूसी जहाज
दरअसल, पिछले हफ्ते ही चीन का एक एयरक्राफ्ट कैरियर ताइवान के पास जापान के 2 द्वीपों के बीच से होकर गुजरा था। वहीं अगस्त में चीन का जासूसी विमान जापान के एयरस्पेस में दाखिल हो गया था। इसे जापान सरकार ने अपने देश की संप्रभुता का उल्लंघन बताया था। 21 सितंबर को अमेरिका में हुई क्वाड देशों की बैठक के दौरान भी जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका ने मिलकर साउथ चाइना सी में मैरीटाइम सिक्योरिटी के लिए सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई थी। चीन और जापान के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। जापान के उप प्रधानमंत्री के तौर पर तारो असो 2006 में भारत के दौरे पर आए थे। उस वक्त उन्होंने एक बयान में कहा था कि 1500 सालों से भी ज्यादा वक्त से इतिहास का ऐसा कोई वाकया नहीं है जब चीन के साथ हमारा संबंध ठीक रहा हो। चीन और जापान के बीच सेनकाकू द्वीपों पर विवाद
जापान और चीन के बीच युद्ध की शुरुआत 1930 में हुई थी और यह 1945 में जापान के शहरों पर परमाणु हमलों के साथ थमा था। युद्ध खत्म होने के बाद भी दोनों देशों के बीच सेनकाकू द्वीपों को लेकर भी लंबे समय से विवाद जारी है। दरअसल, चीन इन द्वीप को अपना हिस्सा कहता है। चीन का कहना है कि जापान ने इन द्वीपों को 1895 में चीन से छीन लिया था और दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद इन्हें चीन को लौटाया जाना चाहिए था। सेनकाकू द्वीपों के पास तेल के भंडार
जापान का आरोप है कि 1969 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में सागर के नीचे तेल भंडार की खबर आने के बाद अचानक चीन ने इलाके पर अपना दावा ठोक दिया। दरअसल, विवादित द्वीप के आसपास सागर में मछलियों की घनी आबादी होने के साथ ही तेल के भंडार भी मौजूद हैं। 1972 में दोनों देशों के बीच जब रिश्तों को सामान्य बनाने की संधि हुई, तब भी इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं हुआ था। 2012 में जापान ने सेनकाकू द्वीपों का राष्ट्रीयकरण करके इस मुद्दे को हवा दे दी। पूरे चीन में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इसके बाद चीन के तटरक्षक बल और मछली पकड़ने वाली नावों का इन इलाकों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए और जापानी जल सीमा का बार-बार उल्लंघन होने लगा।