Tuesday, July 22, 2025
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क्या श्रीलंका से कच्चाथीवू मांगेंगे मोदी:इंदिरा ने समझौते में दे दिया था, 2014 में मोदी सरकार बोली थी- द्वीप के लिए जंग लड़नी पड़ेगी

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अगस्त 2023। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में कहा कि इंदिरा गांधी की सरकार ने 1974 में ‘भारत माता का एक हिस्सा’ श्रीलंका को दे दिया। वे रामेश्वरम के नजदीक एक द्वीप कच्चाथीवू का जिक्र कर रहे थे। 7 महीने बाद मोदी ने सोशल मीडिया पोस्ट में कच्चाथीवू का मुद्दा दोहराया। यह अचानक नहीं था कि मोदी ने कच्चाथीवू मामले पर कांग्रेस को घेरा है। 2014 में पहली बार सरकार बनने के सिर्फ 3 महीने बाद अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि कच्चाथीवू को वापस लेने के लिए ‘जंग लड़नी पड़ेगी’। पीएम मोदी कल यानी शुक्रवार रात श्रीलंका दौरे पर पहुंचे हैं। इससे पहले बुधवार (2 मार्च) को तमिलनाडु विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि केंद्र सरकार श्रीलंका से कच्चाथीवू द्वीप वापस ले।इस प्रस्ताव को भाजपा ने भी समर्थन दिया है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम मोदी श्रीलंका दौरे पर कच्चाथीवू के मुद्दे पर चर्चा करेंगे। सवाल यह भी है कि क्या वाकई कच्चाथीवू को भारत वापस ले सकता है। इस स्टोरी में जानिए क्या है इस द्वीप को लेकर पूरा विवाद…. कच्चाथीवू द्वीप की लोकेशन क्या है? भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच काफी बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इस समुद्री क्षेत्र को पाक स्ट्रेट कहा जाता है। यहां कई सारे द्वीप हैं, जिसमें से एक द्वीप का नाम कच्चाथीवू है। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक कच्चाथीवू 285 एकड़ में फैला एक द्वीप है। ये द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है। ये द्वीप 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था। जो रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर है। रॉबर्ट पाक 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के अंग्रेज गवर्नर हुआ करते थे। इस समुद्री क्षेत्र का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर ही पाक स्ट्रेट रखा गया। इंदिरा गांधी ने 4 समझौतों के जरिए श्रीलंका को सौंपा कच्चाथीवू 1974 से 1976 के बीच उस समय की भारतीय PM इंदिरा गांधी और श्रीलंका की PM सिरिमाव भंडारनायके ने चार समुद्री जल समझौतों पर दस्तखत किए। इसके तहत भारत ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। तब से श्रीलंका इस द्वीप पर कानूनी तौर पर अपना दावा ठोकता है। जब भारत सरकार ने इस द्वीप को लेकर श्रीलंका के साथ समझौता किया था तो तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया था। तब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने PM इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि ये द्वीप ऐतिहासिक रूप से रामनाद साम्राज्य की जमींदारी का हिस्सा है। ऐसे में भारत सरकार को किसी भी कीमत पर ये इलाका श्रीलंका को नहीं देना चाहिए। हालांकि इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को यहां मछली मारने और जाल सुखाने की इजाजत दी गई थी। इसी वजह से भारतीय मछुआरे वहां जाते रहते थे, लेकिन 2009 के बाद श्रीलंका नौसेना वहां जाने वाले भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार करने लगी। समझौते के 15 साल बाद कच्चाथीवू पर तमिलनाडु ने दावा ठोका भारत और श्रीलंका के बीच हुए इस समझौते के 15 साल बाद ही 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने कच्चाथीवू को एक बार फिर से भारत में मिलाने की मांग की। इसके लिए राज्य सरकार ने एक प्रस्ताव पास किया था। श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान उसकी उत्तरी सीमाओं पर तमिल उग्रवादी संगठन LTTE का कब्जा था। इसकी वजह से तमिलनाडु के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप तक आसानी से पहुंचते थे। 2008 में जयललिता ने 1974 और 1976 के बीच हुए कच्चाथीवू द्वीप समझौतों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। 2009 में श्रीलंका की सरकार और LTTE के बीच की लड़ाई लगभग खत्म होने वाली थी। LTTE संगठन कमजोर हो रहा था। ऐसे में श्रीलंका सरकार ने अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया। जब भी तमिलनाडु के मछुआरे मछली मारने के लिए इस द्वीप के करीब जाते थे, श्रीलंका की पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती थी। इसी वजह से तटीय क्षेत्र में रहने वाले लोग इस द्वीप को वापस लेने की मांग एक बार फिर से करने लगे। श्रीलंका सरकार का कहना है कि समुद्र में उसके जल क्षेत्र में मछलियों और दूसरे जलीय जीवों की कमी हो गई है, जिससे उनके मछुआरों की आजीविका प्रभावित हुई है। ऐसे में भारत के मछुआरों को वो इस क्षेत्र में मछली मारने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। अब भी कच्चाथीवू पर बने चर्च में प्रार्थना करने जाते हैं हजारों भारतीय हर साल फरवरी में रामेश्वरम से हजारों लोग कच्चाथीवू द्वीप पर बने सेंट एंथोनी चर्च में प्रार्थना करने के लिए जाते हैं। इस चर्च को तमिलनाडु के एक तमिल कैथोलिक श्रीनिवास पदैयाची ने 110 साल पहले बनवाया था। 2016 में मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि श्रीलंका सरकार अब इस चर्च को गिराने की तैयारी कर रही है, लेकिन बाद में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने स्पष्ट किया कि ऐसा कुछ नहीं होगा।

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