Friday, July 18, 2025
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ओटीटी रिव्यू: क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4:एक नए केस के साथ अदालत में माधव मिश्रा की वापसी, जहां आमने-सामने होगा प्यार, शक और परिवार

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एक्टर पंकज त्रिपाठी एक बार फिर माधव मिश्रा बनकर अदालत में लौटे हैं। इस बार सीरीज के पहले केवल 3 एपिसोड JioCinema पर रिलीज हुए हैं। इतने कम एपिसोड्स में एक जटिल और भावनात्मक केस को दिखाना जोखिम भरा फैसला था। इससे दर्शकों को थोड़ी अधूरी सी अनुभूति हो सकती है, हालांकि आगे के एपिसोड्स को लेकर उत्सुकता भी बनी रहती है। दैनिक भास्कर ने इस सीरीज को 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है। सीरीज की स्टोरी क्या है? नामचीन सर्जन डॉ. राज नागपाल (मोहम्मद जीशान अय्यूब) पर उसकी ही गर्लफ्रेंड रोशनी सलूजा (आशा नेगी) की हत्या का आरोप है। मामला मीडिया की सुर्खियों में है, पुलिस ने साक्ष्य जुटाए हैं, लेकिन तभी आते हैं माधव मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) जो इस केस को एक अलग नजरिए से देखने लगते हैं। जैसे-जैसे केस आगे बढ़ता है, कई किरदार शक के घेरे में आते हैं। कहानी ऐसी है कि हर एपिसोड के बाद दर्शक सोच में पड़ जाते हैं। क्या वाकई वही दोषी है जिसे सभी मान रहे हैं? स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है? माधव मिश्रा के किरदार में पंकज त्रिपाठी हमेशा की तरह अपने मजाकिया, देसी और गूढ़ अंदाज में हर सीन में पकड़ बनाए रखते हैं। मोहम्मद जीशान अय्यूब ने सीरीज में राज नागपाल की भूमिका निभाई है। उनके किरदार में उलझन, दर्द और बेचैनी है। पर कुछ इमोशनल दृश्यों में और गहराई लाई जा सकती थी। आशा नेगी ने रोशनी सलूजा का किरदार निभाया है। कम स्क्रीन टाइम के बावजूद उन्होंने एक आत्मनिर्भर और भावुक युवती का किरदार असरदार ढंग से निभाया है। राज की पत्नी के किरदार में सुरवीन चावला का किरदार खामोश है, लेकिन बहुत कुछ कहता है। हालांकि स्क्रिप्ट उन्हें थोड़ा और विस्तार दे सकती थी। श्वेता बसु प्रसाद का पीड़ित पक्ष की प्राइवेट प्रॉसिक्यूटर लेखा के किरदर में उनका आत्मविश्वास और कोर्ट में आक्रामक शैली देखने लायक है। लेखा एक ऐसा चेहरा हैं जो दिखाती हैं कि निजी भावनाएं जब न्याय की लड़ाई में उतरती हैं, तो सिर्फ कानून नहीं, इंसानियत भी दांव पर होती है। माधव के सामने उनकी टक्कर शो को एक अलग धार देती है। बाकी कलाकारों में मीता वशिष्ठ और खुशबू अत्रे ने अपने किरदारों को अच्छी ईमानदारी से निभाया है। निर्देशन और तकनीकी पक्ष कैसा है? डायरेक्टर रोहन सिप्पी ने कहानी को भावनात्मक और कानूनी ड्रामा के बीच संतुलन देने की कोशिश की है। माधव की एंट्री, कोर्ट के बहस और केस की परतें खोलने के दृश्य अच्छे हैं, लेकिन कुछ टर्निंग प्वाइंट्स पर टेंशन और ड्रामा कमजोर पड़ता है। एपिसोड्स टाइट हैं, लेकिन कुछ जगहों पर सीन्स जल्दबाजी में खत्म किए गए लगते हैं, जिससे असर थोड़ा हल्का पड़ता है। डायलॉग्स में सटीकता है, जो कभी हल्के, तो कभी तीखे लगते हैं। स्क्रीनप्ले कहीं-कहीं ज्यादा सरफेस लेवल पर रहता है, गहराई और ट्रीटमेंट और बेहतर हो सकता था। कैमरे ने इमोशन्स और कोर्ट की गंभीरता को बखूबी कैप्चर किया है। खासकर क्लोज शॉट्स बहुत असरदार हैं। म्यूजिक कैसा है? बैकग्राउंड स्कोर सीन के हिसाब से फिट बैठता है, लेकिन कुछ पलों में थ्रिल और इमोशन और उभार सकता था। सीरीज का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं? यह सीरीज एक दिलचस्प और संवेदनशील शुरुआत करता है। केस में सस्पेंस है, किरदारों में तनाव है, और कोर्ट में बहसें कसी हुई हैं। कम एपिसोड्स की लिमिटेशन ने इमोशनल ग्रिप को थोड़ा कमजोर जरूर किया है, लेकिन अभिनय और ट्विस्ट्स शो को थामे रखते हैं।

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