Monday, December 23, 2024
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एक्टिंग चुनी तो पापा ने एक साल बात नहीं की:एक्ट्रेस अंजलि पाटिल बोलीं, फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीके नहीं समझ पाई तो डिप्रेशन में चली गई थी

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‘रोज सुबह उठती हूं, तब मुझे लगता है कि आज एक अलग संघर्ष है। संघर्ष खत्म ही नहीं होता है’ यह कहना है- नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म दे चुकीं एक्ट्रेस अंजलि पाटिल का। अंजलि पाटिल ने बॉलीवुड में ‘डेल्ही इन ए डे’, ‘चक्रव्यूह’, ‘न्यूटन’, ‘श्री’, ‘मिर्ज्या’, ‘मल्हार’ आदि फिल्मों से लेकर तमिल, तेलुगु, मराठी आदि भाषा की फिल्में भी की हैं। मनोरंजन जगत से दूर-दूर तक नाता न होने के कारण अंजलि यहां के सिस्टम को समझ न सकीं और डिप्रेशन का शिकार भी रहीं। इतना ही नहीं, वे यहां रंग-रूप का भेदभाव भी झेल चुकीं हैं। एक्टिंग करने की इच्छा जाहिर की, तब पिताजी बहुत रूठ गए मैं महाराष्ट्र स्थित नासिक में मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में पैदा हुई। यहीं पली-बढ़ी। फैमिली में कभी किसी ने एक्टर बनने के बारे में सोचा नहीं था। यह प्रोफेशन रिस्पेक्टफुल भी नहीं माना जाता था। मैंने एक्टिंग करने की इच्छा जाहिर की, तब पिताजी बेहद रूठ गए। वे इतने नाराज हुए कि मैं ड्रामा स्कूल गई, तब साल भर मुझसे बात नहीं किए। खैर, मैंने किसी तरह पापा को कंविंस किया। चाय और ब्रेड खाकर दिन गुजारती थी 11वीं-12वीं करने के बाद में पता चला कि एक ऐसा भी स्कूल है, जहां पर किताबी पढ़ाई नहीं, बल्कि एक्टिंग, डांस और गाना गा सकते हो। यहां ग्रेजुएशन भी ड्रामैटिक्स में है। पुणे यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए चोरी-छिपे एचओडी से मिलने गई। उस समय 16 साल की रही होऊंगी। पुणे यूनिवर्सिटी जाकर एचओडी सतीश आलेकर से मिली, तब उन्होंने कहा कि रूटीन ऑडिशन देने आ जाइए। ऑडिशन दिया और सिलेक्ट हो गई। यह तीन दिन का ट्रिप था। यह तीन दिन मेरी जिंदगी के सबसे कठिन दिन थे। तब पांच रुपए में चाय और ब्रेड-बटर आता था, यह खाकर दिन गुजारती थी। पूरे तीन दिन ऐसे ही चलता रहा। वापस आकर ‌घर में बताया कि मेरा सिलेक्शन हो गया है। यहां से आर्टिस्टिक की पढ़ाई शुरू हुई। तीन साल का कोर्स किया। यह मेरी जिंदगी के बड़े इंपोर्टेंट साल रहे। इंडस्ट्री के तौर-तरीके को समझ नहीं पाई, डिप्रेशन में चली गई मैं इंडस्ट्री में आई, तब पांच-छह साल इंडस्ट्री को समझने में ही लग गए। थैंकफुली, मेरी पहली फिल्म ‘डेल्ही इन ए डे’ आई, तब यह फिल्म फेस्टिवल में बहुत चली। मैंने अर्जुन रामपाल, अभय देओल के साथ ‘चक्रव्यूह’ की, यह एकदम कमर्शियल फिल्म थी। ‘चक्रव्यूह’ के बाद वाला समय मेरे लिए बहुत ही अकेला, दुखद था, क्योंकि मैं इंडस्ट्री के तौर-तरीके और जो लाइफ स्टाइल पोट्रे करनी होती है, उसे समझ नहीं पा रही थी। शायद इससे भी मैं बहुत ज्यादा डिप्रेशन में चली गई। उसी दौरान मेरी तेलुगु फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड डिक्लेयर हुआ। तभी मुझे श्रीलंकन फिल्म के लिए इफ्फी का बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड भी मिला। लेकिन यह सारी चीजें एक तरफ थीं और बॉलीवुड में हीरोइन बनने की ट्रेनिंग एक तरफ थी, जो किसी ने दी नहीं थी। इसके बाद तो कई साल तक डिप्रेशन में चली गई, क्योंकि मैं कलाकार हूं और कला दिखाने के लिए आई हूं। यह सब मुझसे नहीं हो पा रहा था। मुझे लोअर मिडिल क्लास लड़कियों के रोल ही ऑफर होते थे शुरुआती दिनों में ऑडिशन देना और रोल पाना बड़ा मुश्किल था। अब जाकर लोग कहते हैं कि तुम कितनी खूबसूरत हो, मगर 8-10 साल पहले मेरे कलर को इतना पसंद नहीं करते हैं। मुझे गांव की लड़की, चॉल की लड़की, आदिवासी लड़की या लो-मिडिल क्लास लड़कियों के रोल ही ऑफर होते थे। उससे भी मुझे बहुत दिक्कत होती थी कि क्या मेरा रंग डिसाइड करेगा कि मैं अमीर दिख पा रही हूं या नहीं। ऑडिशन में मुझे एक ही प्रकार के रोल के लिए बुलाया जाता था, तब उससे निकलने में समय लगता था। एक पॉइंट के बाद मैंने ऑडिशन देना बंद कर दिया, क्योंकि चीजों को बहुत पर्सनली ले रही थी। । खाने-पीने के पैसे नहीं होते थे ‘चक्रव्यूह’ के बाद भी बहुत समय तक अच्छे काम का इंतजार था, क्योंकि काम के नाम पर कुछ भी नहीं करना था। एक तरफ काम को मना रही थी और दूसरी तरफ पैसे भी नहीं थे। घरवालों से भी पैसे मांगती नहीं थी। कुछ समय तक खाने-पीने के लिए भी पैसे नहीं हुआ करता था। एक समय ऐसा था कि पैसे नहीं होते थे। उस दौरान मुझे खाने-पीने की बहुत दिक्कत थी। मुझे याद है कि उन दिनों मीटिंग एक-दो बजे के बीच रखती थी ताकि वहां पर जाऊं तो कुछ खाने को मिल जाए। यह लोगों के जीवन में होता ही होगा। जितने भी कलाकार हैं, उनमें ज्यादातर यह दिन देखे ही होंगे। मैंने बहुत कुछ झेला है, जिया है। मेरे साथ कॉम्प्रोमाइज करने की बातें नहीं हुईं कॉम्प्रोमाइज करने की बात कहने वाले लोग आसपास बहुत होते हैं, मगर लोगों ने मुझे उस तरह से कभी अप्रोच नहीं किया। नसीब से ऐसी कोई घटना मेरे साथ घटी नहीं। लेकिन मुझे पता है कि मैंने शायद बहुत सारा काम इसलिए गंवाया है, क्योंकि बहुत सारे लोगों को बिल्कुल एंटरटेन नहीं किया है। पिछले 18 महीने से नॉन स्टॉप शूटिंग कर रही हूं मैं पिछले 18 महीने से नॉन स्टॉप शूटिंग कर रही हूं, जो बहुत ही अच्छी बात है। अभी लखनऊ से फिल्म ‘जागृति’ की शूटिंग करके आई हूं। इसमें लॉयर का किरदार निभा रही हूं। इसके बाद सुदीप्तो सेन निर्मित फिल्म की शूटिंग करने वेस्ट बंगाल पुरुलिया जाऊंगी। शार्ट फिल्म ‘नाम’ का निर्माण और उसमें अभिनय भी किया है। यह कई सारी फेस्टिवल में दिखाई जा रही है। अभी एक मराठी शॉर्ट फिल्म ‘बेनी ब्रेड’ का टोकियो में वर्ल्ड प्रीमियर हुआ है।

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