अमेरिका बोला-बांग्लादेश पर डबल स्टैंडर्ड नहीं:विदेश मंत्रालय की हिंदी-उर्दू प्रवक्ता ने कहा-हमारा मकसद वैश्विक शांति; UNSC में भारत को स्थायी सदस्यता मिले
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर अमेरिका चिंतित है। बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस को 2006 में शांति का नोबल पुरस्कार देने वाले अमेरिका का मानना है कि बांग्लादेश में अभी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। दो दिन के दौरे पर इंदौर आईं अमेरिकी विदेश मंत्रालय की हिंदी-उर्दू प्रवक्ता और लंदन इंटरनेशनल इंडिया हब की डिप्टी डायरेक्टर मार्गरेट मॅक्लाउड ने कहा कि हमारी वहां पूरी नजर है और इसे लेकर हमारा कोई डबल स्टैंडर्ड नहीं है। उन्होंने UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) में भारत की स्थायी सदस्यता का भी समर्थन किया। मार्गरेट ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में रूस और भारत की दोस्ती पर भी अपना पक्ष रखा, पढ़िए पूरा इंटरव्यू… भास्कर: शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं, इस पर अमेरिका का क्या स्टैंड है?
मार्गरेट: बांग्लादेश से आ रही खबरें काफी चिंताजनक हैं। वहां जो हो रहा है, सही नहीं है। चुनी हुई सरकार के खिलाफ विद्रोह को सही नहीं ठहरा सकते। अमेरिका का कोई डबल स्टैंडर्ड नहीं है। वैश्विक शांति ही अमेरिका का मकसद है। अमेरिका बांग्लादेश की समस्त गतिविधियों पर नजर रखे हुए है। हमारी कोशिश है कि मानव अधिकारों का उल्लंघन न हो। हम चाहते हैं कि जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार का सम्मान कायम रहे। हमारी उम्मीद है कि सभी लोग अपने धर्म और विश्वास के मुताबिक अपना जीवन जी सकें। यही लोकतंत्र की बुनियादी जरूरतें हैं। भास्कर: भारत की रूस से दोस्ती और अमेरिका के रूस पर लगाए प्रतिबंध नहीं मानने से क्या भारत-अमेरिकी रिश्ते प्रभावित होंगे?
मार्गरेट: अमेरिका समझता है कि भारत और रूस के बीच का रिश्ता भारत और अमेरिका के रिश्ते से अलग है। हमारा इतिहास, व्यापार भी अलग है। अमेरिका देख रहा है कि रूस अपने तेल व्यापार का फायदा यूक्रेनी लोगों पर हमले में कर रहा है। इसलिए हमारी आशा है कि पूरी दुनिया रूस के साथ व्यवसाय कम करे, ताकि रूस अपनी आक्रामक जंग खत्म करे। भास्कर: यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के प्रति अमेरिका का क्या स्टैंड रहेगा?
मार्गरेट: अमेरिकी सरकार इसलिए यूक्रेनी लोगों की सहायता कर रही है, क्योंकि वहां के लोग स्वतंत्रता-सम्प्रभुता और अपनी जमीनी सीमा के लिए लड़ रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन यूक्रेन के वीर नागरिकों की मदद कर रहा है। अपना भविष्य तय करने में यूक्रेन के लोगों की पूरी भूमिका होनी चाहिए। हम ऐसी दुनिया में रहना चाहते हैं, जहां हर देश अपने पड़ोसी देशों का सम्मान करे। भास्कर: बाइडेन के प्रेसिडेंट रहते हुए भारत-अमेरिका रक्षा सौदा क्या पूरा होगा?
मार्गरेट: दो दशकों से भारत और अमेरिका के बीच का व्यापार काफी बढ़ गया है। यह बढ़ोतरी रक्षा के क्षेत्र में भी हुई है। हमारी आशा है कि यह सहयोग जारी रहे, लेकिन मैं कोई भविष्यवाणी नहीं करूंगी। हर एक प्रशासन अपनी नीति बना सकता है। अमेरिका की दोनों पार्टियां समझती हैं कि भारत से संबंध बहुत महत्वपूर्ण है। मार्गरेट ने इन मुद्दों पर भी बात रखी UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता: UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए अमेरिका हमेशा समर्थन में रहा है। मौजूदा चुनौतियों में अमेरिका की पूरी कोशिश है कि भारत को जल्द से जल्द स्थायी सदस्यता मिल जाए। इजराइल-हमास युद्ध: फिलस्तीन के आम नागरिकों के लिए अमेरिका, इजराइल के अपने साझेदारों के साथ बातचीत के दौरान युद्धग्रस्त क्षेत्र में मानवीय मदद बढ़ाने पर जोर दे रहा है। युद्धग्रस्त क्षेत्र में नाकों को खोला जाना चाहिए, ताकि लोगों की जरूरतें पूरी हो सकें। खासकर सर्दियों के मौसम में बुनियादी जरूरत की चीजों की किल्लत का खतरा सामने आ रहा है। इसलिए लोगों तक मानवीय मदद पहुंचाई जानी चाहिए। इंदौर की स्वच्छता: मैंने देखा कि स्वच्छता के इस खिताब को लेकर इंदौर के लोग खुद पर बेहद गर्व महसूस करते हैं। मार्गरेट मॅक्लाउड, अमेरिका के मुंबई स्थित महावाणिज्य दूतावास के प्रवक्ता ग्रेग पारडो के साथ इंदौर के दो दिवसीय दौरे पर आई थीं। उन्हें यहां अपने होटल के रूम से इंदौर शहर की कचरा गाड़ियों पर बजने वाला गाना काफी पसंद आया। क्या है UNSC, भारत क्यों शामिल होना चाहता है? भारत UNSC का परमानेंट मेंबर बना, तो उसकी सहमति जरूरी होगी भारत UNSC में छठी परमानेंट सीट का सबसे मजबूत दावेदार भारत की सदस्यता में सबसे बड़ा रोड़ा चीन UNSC के 5 परमानेंट मेंबर हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। इनमें 4 देश भारत का समर्थन करने को तैयार हैं, लेकिन चीन नहीं चाहता कि UN की सबसे ताकतवर बॉडी पर भारत को एंट्री मिले। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कोई भी प्रस्ताव पारित करने के लिए सभी 5 स्थायी देशों का समर्थन जरूरी है। फ्रांस, अमेरिका, रूस और ब्रिटेन अपनी सहमति जता चुके हैं, लेकिन चीन अलग-अलग बहानों से भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता रहा है। जबकि भारत ने UNSC में चीन के परमानेंट मेंबर बनने का समर्थन किया था।