Tuesday, April 29, 2025
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अडाणी बोले-8 घंटे घर रहने पर भी बीबी भाग जाएगी:काम में आनंद है तो आपकी वर्क लाइफ बैलेंस, ये थोपा नहीं जा सकता

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वर्क-लाइफ बैलेंस पर गौतम अडाणी ने कहा है कि ‘आपका वर्क-लाइफ बैलेंस मेरे ऊपर और मेरा आपके ऊपर थोपा नहीं जाना चाहिए। मान लीजिए, कोई व्यक्ति अपने परिवार के साथ चार घंटे बिताता है और उसमें आनंद पाता है, या कोई अन्य व्यक्ति आठ घंटे बिताता है और उसमें आनंद लेता है, तो यह उसका बैलेंस है। इसके बावजूद यदि आप आठ घंटे बिताते हैं, तो बीवी भाग जाएगी।’ अडाणी ने कहा है कि संतुलन तब महसूस होता है जब कोई व्यक्ति वह काम करता है जो उसे पसंद है। जब कोई व्यक्ति यह स्वीकार कर लेता है कि उसे कभी ना कभी जाना है, तो उसका जीवन आसान हो जाता है। गौतम अडाणी का यह बयान इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति के सप्ताह में 70 घंटे काम करने वाले डिबेट के बीच आया है। इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति ने हाल ही में 70 घंटे वर्क कल्चर पर कहा था, ‘इंफोसिस में मैंने कहा था, हम दुनिया के टॉप कंपनियों के साथ अपनी तुलना करेंगे। मैं तो आपको बता सकता हूं कि हम भारतीयों के पास करने के लिए बहुत कुछ है। हमें अपने एस्पिरेशन ऊंची रखनी होंगी क्योंकि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलता है। इसका मतलब है कि 80 करोड़ भारतीय गरीबी में हैं। अगर हम कड़ी मेहनत करना नहीं चाहते, तो कौन करेगा कड़ी मेहनत?’ 1986 में 6 दिन वर्किंग वीक से 5 दिन के बदलाव से निराश थे
इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 70 घंटे काम करने वाले अपने विवादास्पद बयान का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि भारत की प्रगति के लिए कड़ी मेहनत बहुत जरूरी है। CNBC ग्लोबल लीडरशिप समिट में मूर्ति ने कहा – मुझे खेद है, मैंने अपना दृष्टिकोण नहीं बदला है। मैं इसे अपने साथ कब्र तक ले जाऊंगा। उन्होंने कहा कि वह 1986 में भारत के 6 दिन वर्किंग वीक से 5 दिन वीक के बदलाव से निराश थे। भारत के विकास के लिए त्याग की आवश्यकता है, न कि आराम की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हफ्ते में 100 घंटे काम करने की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा,’जब प्रधानमंत्री मोदी इतनी मेहनत कर रहे हैं, तो हमारे आसपास जो भी हो रहा है, उसे हम अपने काम के जरिए ही एप्रीशिएट कर सकते हैं। लंबे ‘वर्किंग ऑवर्स’ ने एक साल में छीनी 7.45 लाख लोगों की जान
काम के लंबे घंटों का सेहत पर पड़ने वाले असर को जानने के लिए 194 देशों पर रिसर्च की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की तरफ से की गई इस स्टडी में 1970 से 2018 के बीच 154 देशों में हुए 2300 सर्वे से मिले डेटा को भी शामिल किया गया। 2021 में जर्नल ‘एनवायरमेंट इंटरनेशनल’ में इसकी रिपोर्ट प्रकाशित हुई। स्टडी में दुनियाभर में 48.8 करोड़ लोग लंबे ‘वर्किंग ऑवर्स’ के बोझ तले दबे मिले। ये लोग हर हफ्ते 55 या उससे ज्यादा घंटों तक काम करने को मजबूर थे। कामकाज के लंबे घंटों की वजह से दिल की बीमारियों और स्ट्रोक की चपेट में आकर 7.45 लाख लोगों ने जान गंवा दी। इनमें से 3.98 लाख लोगों की जान स्ट्रोक की वजह से गई, जबकि 3.47 लाख लोगों ने दिल की रोगों की वजह से दम तोड़ दिया। साल 2000 से 2016 के बीच लंबे ‘वर्किंग ऑवर्स’ के कारण दिल की बीमारियों का शिकार होकर दम तोड़ने वालों की संख्या 42 फीसदी और स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या 19 फीसदी बढ़ गई। हफ्ते में 35 से 40 घंटे काम करने वालों की तुलना में 55 या उससे ज्यादा घंटे काम करने वाले व्यक्ति पर स्ट्रोक का खतरा 35 फीसदी और हृदय रोगों का खतरा 17 फीसदी बढ़ जाता है। इसके बावजूद कामकाज के घंटे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना के बाद बढ़ गए काम के घंटे
कोविड काल में काम के घंटे और ज्यादा बढ़ गए। डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल डॉ. टेड्रोस एडनोम गेब्रेयेसस के मुताबिक एक तरफ वर्कफ्रॉम होम जैसी सुविधाओं ने घर और दफ्तर के अंतर को लगभग मिटा दिया। वहीं, दूसरी तरफ बहुत सी कंपनियों में छंटनी के बाद बचे कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ गया। कंपनियां और बॉस चाहते हैं कि कर्मचारी बिना किसी शिकायत बिना घड़ी देखे काम करते रहें। ऑफिस के बाद भी हर कॉल, मैसेज और ईमेल का तुरंत जवाब दें। दिन-रात, वीकेंड और छुट्टियों की परवाह किए बिना हर समय काम के लिए मौजूद रहें। कॉरपोरेट कल्चर और टेक्नोलॉजी ने कर्मचारियों से उनका पर्सनल स्पेस भी छीन लिया है। 40 घंटे से ज्यादा काम से महिलाओं को कैंसर का खतरा
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के मुताबिक 30 साल तक हफ्ते में 40 घंटे से ज्यादा काम करने वाली महिलाओं को डायबिटीज, कैंसर, गठिया और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर वे 60 या इससे ज्यादा घंटे तक काम करती हैं तो इन बीमारियों की चपेट में आने का खतरा तीन गुना हो जाता है। NCBI पर मौजूद कई रिसर्च बताती हैं कि पुरुष कर्मचारियों की तुलना में महिलाओं पर बोझ ज्यादा है। उन्हें ज्यादा लंबे घंटों तक काम करना पड़ता है। दफ्तर के साथ ही घर और बाहर बहुत से कामों के लिए उन्हें पैसे भी नहीं मिलते। उनकी नींद नहीं पूरी होती। लगातार ऐसे हालात में काम करने वाली महिलाओं की मेंटल और फिजिकल हेल्थ खराब होने लगती है। ओवर वर्कलोड के शिकार युवा, जवाब दे रहा दिल
भारतीय कर्मचारी पहले से ही वर्कलोड के शिकार हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार भारत दुनिया का 5वां ऐसा देश है, जहां काम के घंटे सबसे ज्यादा लंबे हैं, लेकिन सैलरी कम। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. सुमन भंडारी बताते हैं कि हर दिन 12-14 घंटे काम करने, नींद पूरी न होने और शरीर को आराम न देने से हार्ट और ब्रेन पर प्रेशर और स्ट्रेस बढ़ता है। इससे स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। तनाव में लोग ज्यादा स्मोकिंग शुरू कर देते हैं, ज्यादा खाना खाने लगते हैं, जिससे वजन बढ़ सकता है। ऑफिस में काम ज्यादा होने पर घर में खाना न बना पाना और खाने के लिए वक्त न निकाल पाना आम बात है। ऐसे में युवा पूरा दिन बैठे-बैठे काम करते हैं और फास्ट फूड खाकर काम चला लेते हैं। यह सामान्य बर्ताव नहीं है। भारत में पहले ही युवा काम के बोझ से जूझ रहे हैं। जिससे कम उम्र में ही हार्ट अटैक के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कर्मचारियों के पास इलाज कराने तक का वक्त नहीं
लक्ष्मीपत सिंघानिया ह्रदय रोग संस्थान, कानपुर में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. उमेश्वर पांडेय बताते हैं कि ओवरटाइम का यह सिलसिला सेहत पर भारी पड़ता है। सिगरेट और शराब की लत पड़ जाती है और एक्सरसाइज छूट जाती है। काम के लंबे घंटों की वजह से कर्मचारियों को डॉक्टर के पास जाने और इलाज कराने तक का वक्त नहीं मिलता। लगातार लंबे समय तक ऐसे हालात में काम करने की वजह से कर्मचारी हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज और मेटाबॉलिक सिंड्रोम की चपेट में आ जाते हैं। नींद पूरी न होने से थकान रहने लगती है। गर्दन, पीठ और सीने में दर्द जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। उनकी मेंटल हेल्थ भी बिगड़ जाती है और वे स्ट्रेस, डिप्रेशन के मरीज बन जाते हैं और उन्हें आत्महत्या के ख्याल आने लगते हैं। शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों को अक्सर तय समय से ज्यादा काम करना पड़ता है। खासकर नाइट शिफ्ट का शरीर पर बुरा असर पड़ता है। कई रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि सप्ताह में 35-40 घंटे की तुलना में 55 या इससे ज्यादा घंटे काम से करने की वजह से दिल के रोगों व स्ट्रोक का जानलेवा खतरा बढ़ जाता है। दिल की बीमारियों और काम के लंबे घंटों में कनेक्शन
डॉ. सुमन के मुताबिक लगातार लंबे वर्किंग ऑवर्स में काम करने वाले परिवार को समय नहीं दे पाते। जिससे रिश्ते बिगड़ने लगते हैं। साथ ही उनकी बॉडी में स्ट्रेस से निपटने वाला सिस्टम गड़बड़ होने लगता है। तनाव होते ही शरीर में कॉर्टिसोल नाम का हॉर्मोन रिलीज होता है। तनाव से भरा माहौल लगातार बना रहे तो कॉर्टिसोल हॉर्मोन का लेवल भी उतने ही ज्यादा समय तक बढ़ा रहेगा। इससे कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, शुगर और ब्लडप्रेशर, हाईपरटेंशन बढ़ जाता है। शरीर में होने वाले ये बदलाव हार्ट अटैक की आशंका बढ़ाते हैं। तनाव की वजह से दिल की मांसपेशियों तक ब्लड की पर्याप्त सप्लाई नहीं हो पाती, जिससे ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी भी शुरू हो जाती है। इससे स्ट्रोक का रिस्क बढ़ता है। समय रहते ‘वॉर्निंग साइन’ पहचानें
डॉ. उमेश्वर कहते हैं कि काम के बढ़े घंटों की वजह से बिगड़ती सेहत के लक्षण पहले से दिखने लगते हैं। ये लक्षण किसी ‘वॉर्निंग साइन’ से कम नहीं होते। इसलिए कभी भी इनकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जैसे ही ये लक्षण दिखें, तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। घटती क्षमता, बढ़ती गलतियां
डॉ. सुमन भंडारी कहते हैं कि इंसान का ब्रेन लगातार ज्यादा देर तक एक्टिव और फोकस्ड होकर काम करने के लिए नहीं बना है। उदाहरण के तौर पर, अक्सर जूनियर डॉक्टर्स को लगातार दो-दो दिन तक अस्पताल में ड्यूटी पर रहना पड़ता है। इसपर जब रिसर्च हुई तो देखा गया कि मरीजों की देखरेख, उनका इलाज करने की क्षमता प्रभावित होती है, इलाज के दौरान गलतियों की आशंका के साथ ही मरीजों को नुकसान पहुंचने का अंदेशा भी बढ़ जाता है। सप्ताह में 70 घंटे काम करने से काम करने की क्षमता घटेगी, ज्यादा गलतियां होंगी। डॉ. पांडेय बताते हैं कि इन तथ्यों के बावजूद अगर कर्मचारियों को लगातार सप्ताह में 70 घंटे तक काम करना पड़े तो उनके दिल पर बुरा असर पड़ेगा। लगातार बना रहने वाला तनाव, हॉर्मोंस में असंतुलन, ब्लड प्रेशर जानलेवा हो सकता है। नींद पूरी हो पाना, हेल्दी लाइफस्टाइल और अच्छी डाइट ले पाना मुश्किल हो जाता है। एक्सरसाइज के लिए भी वक्त नहीं मिलता। मोटापा बढ़ने लगता है। यह सभी स्थितियां हार्ट पर रिस्क बढ़ाती हैं। ऐसे में नियमित तौर पर जांच और डॉक्टरों की निगरानी जरूरी हो जाती है। छुट्टी लें, घूमे-फिरें और अपनों से मिलें
डॉ. पांडेय कहते हैं कि इन दिनों वर्क-लाइफ बैलेंस बना पाना मुश्किल हो गया है। लेकिन, कुछ तरीकों से इसमें मदद मिल सकती है। समय पर अपना काम खत्म करें और पर्सनल लाइफ पर उसका असर न पड़ने दें। बीमारियों से बचने और लंबे समय तक काम करने के लिए अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव लाएं। काम और जिंदगी में संतुलन बनाएं। ऐसे छोटे-छोटे बदलावों से जान पर मंडराते खतरे को काफी हद तक टाला जा सकता है। यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि कोई भी काम सेहत से ज्यादा जरूरी नहीं हो सकता। इसलिए अपनी सेहत की अनदेखी न करें। —————————– ये खबर भी पढ़ें… नारायण मूर्ति ने 70 घंटे काम करने की बात दोहराई: कहा- युवाओं को बहुत मेहनत करनी होगी, देश में 80 करोड़ लोग गरीब इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने एक बार फिर हफ्ते में 70 घंटे काम करने की बात दोहराई। उन्होंने कहा- युवाओं को यह समझना होगा कि हमें कड़ी मेहनत करनी होगी और भारत को नंबर एक बनाने की दिशा में काम करना होगा। उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी आकांक्षाएं ऊंची रखनी होंगी, क्योंकि 800 मिलियन (80 करोड़) भारतीयों को मुफ्त राशन मिलता है। इसका मतलब है कि 800 मिलियन भारतीय गरीबी में हैं। अगर हम कड़ी मेहनत करने की स्थिति में नहीं हैं तो कौन कड़ी मेहनत करेगा।’ पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

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